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एक साधु ने देशाटन की योजना बनाई. वह एक गांव से दूसरे गांव चले जा रहे थे. इसी तरह सिलसिला शुरू हुआ. जहां रात हो जाती उसी गांव में किसी घर में आसरा ले लेते.

एक गांव में प्रवेश करते ही शाम हो गई. गांव की सीमा पर जो पहला घर दिखा वहां पहुंचे आश्रय मांगने. घर बड़ा था और उस घर में बस दो जन रहते थे. घर के मालिक ने साधु को रात बिताने की अनुमति दे दी.

गृहस्वामी ने साधु को भोजन के लिए भी कहा. वैसे तो साधु स्वयं पकाकर ही खाते थे लेकिन उस दिन उन्होंने उसके घरका भोजन स्वीकार कर लिया और फिर बरामदे में पडी खाट पर लेट गए.

घर के अहाते में गृहस्वामी का सुन्दर हृष्ट पुष्ट घोडा भी बंधा था. साधु उसे निहारने लगे. साधु के मन में विचार आया- यदि यह घोडा मेरा हो जाए तो देशाटन कितना सरलहो जाता. एक दिन में कई-कई गांव सरलता से घूम लेता.

इन्हीं विचारों में डूबे थे. उन्होंने तय किया कि जैसे गृहस्वामी सो जाता है, मैं आधी रात को घोडा लेकर चुपके से निकल लूंगा. जैसा सोचा वैसा ही किया भी. साधु वह घोडा ले उडा.
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3 COMMENTS

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
      आप नियमित पोस्ट के लिए कृपया प्रभु शरणम् से जुड़ें. ज्यादा सरलता से पोस्ट प्राप्त होंगे और हर अपडेट आपको मिलता रहेगा. हिंदुओं के लिए बहुत उपयोगी है. आप एक बार देखिए तो सही. अच्छा न लगे तो डिलिट कर दीजिएगा. हमें विश्वास है कि यह आपको इतना पसंद आएगा कि आपके जीवन का अंग बन जाएगा. प्रभु शरणम् ऐप्प का लिंक? https://goo.gl/tS7auA

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