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तब बाली ने बताया- रावण को मैंने बंदी बनाया था. जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया. प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें. वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा.

जब अंगद श्रीरामजी के दूत बनकर रावण की सभा में गए. वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी.

अंगद की चुनौती के बाद एक-एक करके सभी वीरों ने प्यास किए परंतु असफल रहे. अंत में रावण अंगद के पैर डिगाने के लिए आया. जैसे ही वह अंगद का पैर हिलाने के लिए झुका, उसका मुकुट गिर गया.

अंगद वह मुकुट लेकर चले आए. ऐसा प्रताप था रघुकुल के राजमुकुट का. राजा दशरथ ने गंवाया तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी, प्राण भी गए. बाली के पास से रावण लेकर भागा तो उसके भी प्राण गए.

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