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सूर्य किसी भी राशि पर करीब एक महीने रहते हैं. 15 जनवरी को सूर्य राशि बदलकर मकर में चले जाएंगे और पुनः तेजोमय हो जाएंगे. तब संक्रांति के बाद विवाह आदि मांगलिक कार्य पुनः आरंभ हो जाएंगे.

इस माह में ईश्वर प्रार्थना और धर्म-आध्यात्म के कार्यों में विशेष रूप से रूचि लेनी चाहिए. खर मास में महामृत्युंजय का जप और नवग्रह शांति सम्बंधी अनुष्ठान के लिए अत्यधिक शुभ होता है.

सूर्य देवता हैं और बृहस्पति देवताओं के गुरू. इसलिए जब तक सूर्यदेव गुरू की राशि में होते हैं तब मंत्र शक्ति का शीघ्र फल मिलता है.

शास्त्रों में कई स्थान पर खर मास में नवविवाहिता कन्याओं के लिए पति के साथ संसर्ग की मनाही है इसलिए इस पूरे महीने के दौरान नवविवाहिताओं को अपने मायके में आकर रहने को कहा गया है.

महाभारत के अनुसार खर मास में ही अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर गिरा दिया था. यह मास प्राण त्यागने के लिए उचित नहीं इसलिए भीष्म ने इच्छामृत्यु के वरदान का प्रयोग किया और बाणों से छलनी होकर भी उन्होंने प्राण नहीं त्यागे.

कहा जाता है कि खर मास में प्राण त्यागने से जीवनकाल के संचित पुण्यों का पूर्ण फल नहीं मिलता. भीष्म पितामह को भय था कि कहीं इस कारण उनका अगला जन्म कष्टप्रद न हो जाए.

माघ मास की मकर संक्रांति आई तब उसके शुक्ल पक्ष की एकादशी को भीष्म ने अपने प्राण त्यागे. ऐसा उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के परामर्श से किया था. इसलिए भी कहा जाता है कि माघ मास में देह त्यागने वाला स्वर्ग का भागी होता है.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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