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पर कुछ ही समय में बलवान असुर सावधान हो गये, पूरा दम लगा कर जूझने लगे. आक्रमण का समाचार पा असुरों के दूसरे साथी भी अपनी-अपनी तैयारी के साथ कुछ ही समय में लड़ाई के मैदान में आ डटे.

असुरों को मजबूत होते देख भरद्वाज ऋषि देवराज इंद्र को याद किया, उन्होंने उनकी प्रार्थना की तो देवराज वहां पहुंच गये जहां असुरों से दोनों राजाओं की भयानक जंग जारी थी.

असुरों को अचानक ही तैयारी करनी पड़ी थी इसलिये उनके हथियारों के हमले चूकने लगे. उधर मंत्र से सिद्ध किये दिव्य हथियार अपना तेज दिखा ही रहे थे और जब स्वयं देवराज पहुंच गए तो फिर पूछना ही क्या?

असुरों का सफ़ाया हो गया. असुरों का वधकर देवराज ने उनकी सारी धन संपदा कब्जा कर राजाओं को सौंप दी. दोनों राजाओं ने कुलगुरु भरद्वाज एवं इंद्र का अभिवादन किया और दुश्मन से कब्जायी सारी संपत्ति का गुरु के चरणों में डाल कर चले गए. स्रोत: ऋग्वेद

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश
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