एक संन्यासी नगर के छोर पर जहां जंगल शुरू होता था वहां कुटी बनाकर रहते थे. संन्यासी का स्वभाव होता ही है संतोषी वह भी संतोषी स्वभाव के थे. किसी से मांगने नहीं जाते थे.

नगर के लोग उनके स्वभाव से परिचित थे. कुछ दानी लोग उनको समय-समय पर कुछ दान कर देते. संन्यासी का जीवन उतने में ही संतुष्टि से कट जाता. संपत्ति के नाम पर उन्होंने कभी एक जोड़ी धोती, गमछा और एक झोली के अतिरिक्त कुछ रखा नहीं.

किसी भक्त ने अपने हाथों से एक झोला बनाकर प्रेमपूर्वक संन्यासी को भेंट किया तो वह मना नहीं कर पाए. अब उनके पास एक जोड़ी झोला हो गया. कुटिया के पास चूहे बहुत रहते थे. झोला खूंटी पर टंगा होता था. चूहों ने उसे कुतर दिया.

स्वामीजी ने जीवन में पहली बार कुछ संपत्ति रखी थी, उसे भी चूहे खा गए. उन्हें लगा कि इन चूहों के मन में भय पैदा होना चाहिए. कहीं से एक बिल्ली का बच्चा लाए और पाल लिया.

अब उन्हें अपने साथ-साथ बिल्ली के बच्चे का भी पालन करना था. यदि कुछ अन्न नहीं रहता तो वह किसी से मांगने के स्थान पर जल पीकर गुजारा कर लिया करते थे लेकिन अब तो उनके पीछे एक और जान थी.

विवश होकर उन्हें भिक्षा भी मांगनी पड़ने लगी. एक बार दान-भिक्षा मांगनी पड़ी तो फिर लोगों ने स्वभावतः कुछ न कुछ दे जाने की आदत छोड़ दी क्योंकि उन्हें पता था कि यदि परेशानी में होंगे तो बता देंगे, जबकि पहले लोग उन्हें स्वतः दान कर जाते थे.

बिल्ली के बच्चे के लिए तो उन्हें लोगों से दूध भी मांगना पड़ता. इस बात का उन्हें कष्ट होता था कि दूध मांगना पड़ता है. उन्हें लगा कि यदि उनके पास एक गाय हो तो इस समस्या से छुटकारा हो जाए.

उन्होंने एक भक्त से गाय भी मांग ली. गाय के लिए वह रोज जंगल से अच्छा चारा काटकर लाते. किसी ने सलाह दी कि क्यों न आप वन की भूमि थोड़ी साफ करा लें और उसमें चारे उगा लें. वन जाने से मुक्ति मिले.

सलाह जम गई. पहले उन्होंने थोड़ी भूमि पर चारा उगाना शुरू किया. गाय ने बच्चा दिया और धीरे-धीरे गायों की संख्या बढ़ती गई. अब उनके पास बड़ी सी गौशाला हो गई. गौशाला के लिए सेवक रख लिए.

सेवकों के आहार के लिए अन्न का इंतजाम करने के लिए आसपास की भूमि पर खेती शुरू करा दी. सेवक बढ़ गए. सेवकों के कुटुंबजन भी आते थे. इसलिए उनकी कुटिया भी पहले से कई गुना बड़ी हो गई. वस्त्र भी कई लेने पड़ गए.

खेती भी लगातार बढ़ती गई. अनाज जरूरत से ज्यादा पैदा हुआ. उसे रखने के लिए उन्होंने कुटिया से सटे एक अनाज घर बनाया. अनाज जमा होने लगा तो फिर चूहे आ गए.

एक दिन वह अनाजघर के पास लेटे थे तभी एक चूहा अनाज की बोरी से सीधा उनके शरीर पर कूद गया. पीछे-पीछे चलते उन्हें कई चूहे भी नजर आ गए. मेरी कुटिया में फिर से चूहे आ गए! वह सोचने लगे.

चूहे से बचने के लिए ही तो यह सब शुरू हुआ था. इतना सब करता चला गया और वापस जीवन में वही समस्या पैदा हो गई. इससे सुखी तो मैं पहले ही था. वह पछताने लगे कि एक अतिरिक्त झोले ने यह सब झमेला कर दिया.

सोचकर देखिए कहीं ऐसा तो नहीं है कि बहुत संग्रह करने की प्रवृति ही आपकी सारी उलझनों का कारण बन रही है. हम एक लक्ष्य बनाते हैं. उस लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही उससे बड़ा लक्ष्य अपने आप खड़ा करते जाते हैं जैसा संन्यासी के साथ हुआ.

जिस संन्यासी ने स्वयं के लिए कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया उसे बिल्ली के बच्चे के कारण दूध मांगना पड़ा और फिर तो सिलसिला ही चल पड़ा. वह झोला उनकी आवश्यकता से अधिक था और उसने उन्हें कहां से कहां पहुंचा दिया.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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