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एक बार ऋषियों में यज्ञ के दौरान इस बात पर विवाद हो गया कि अग्नि और जल में से कौन श्रेष्ठ है. बात बढ़ते-बढ़ते यहां तक पहुंच गई कि जब तक इसका निर्णय नहीं हो जाता, यज्ञ की पूर्णाहुति नहीं होगी.

ऋषियों में दो फाड़ हो गया. कुछ अग्नि की श्रेष्ठता बताने लगे दूसरा दल वरुण को श्रेष्ठ साबित करने के लिए तर्क प्रस्तुत कर रहा था.

इंद्र आदि देवता इससे बड़े चिंतित हो गए. देवलोक में भी वरुण और अग्नि की श्रेष्ठता को लेकर विवाद बढ़ने लगा. कुछ अग्नि को श्रेष्ठ बता रहे थे, तो कुछ वरुण को.

अग्नि के पक्ष में ऋषियों ने तर्क दिया- अग्नि जीवन के आधार हैं. पापों के नाशक और देवों के मुख स्थान हैं. यज्ञों में देवों के लिए दी गई आहुति को अग्नि ही देवों तक पहुंचाते हैं.

वरुण को श्रेष्ठ बताने वाले ऋषियों ने जबाव दिया- जल के बिना शुद्धता की कल्पना नहीं हो सकती. यज्ञआदि कार्य करने से पहले स्नान जरूरी है, अन्यथा देवता उसे ग्रहण नहीं करते. तो यदि जल ही न हुआ तो स्नान न होगा और स्नान न हुआ तो यज्ञ का क्या मतलब?

अग्नि समर्थकों ने फिर तर्क दिया- जीवन को अग्नि ही आधार देते हैं क्योंकि मनुष्यों का भरण-पोषण करने वाले देवों का पोषण अग्नि के माध्यम से होता है. अग्नि मनुष्यों में शुक्र के रूप में स्थित होते हैं जो स्त्री के साथ संयोग से संतान का रूप लेता है.
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