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उनके मरने के बाद प्रियमेध के बेटे ने पहेली का हल सोचने का जिम्मा लिया. वह भी बूढा होकर मर गया लेकिन हल नहीं खोज पाया. इसी तरह प्रियमेध की एक के बाद एक कई पीढियां गुजरती गयीं, सभी कक्षिवान की पहेली का हल खोजते स्वर्गवासी होते रहे.

इस तरह प्रियमेध की आठ पीढियां पहेली का हल नहीं ढूंढ सकीं और धरती से विदा हो गईं पर कक्षीवान अपनी बुझाई पहेली का जवाब पाने के लिए जिंदा रहे. कक्षीवान के पास नेवले के चमड़े की एक बडी-सी थैली थी. थैली में पिप्पली, चावल जैसे अनाज भरे थे.

हर साल वे उसमें से एक-एक दाना निकालकर फेंक देते थे. जब तक थैली के सारे दाने न खत्म हो जायें तब तक का जीवन उन्हें हासिल था. इस समय कक्षीवान की उम्र 900 साल से ज्यादा की हो चुकी थी पर वे जीवित थे.
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