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पितरों की दुर्दशा देखकर अगस्त्य ने विवाह का निश्चय किया. उन्होंने अपने योग्य एक उत्तम पत्नी का विचार किया और उसकी आकृति बनाई.

उन्हीं दिनों विदर्भ नरेश संतान प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे थे. अगस्त्य द्वारा कल्पित शिशु को देवों ने विदर्भ नरेश की पत्नी के गर्भ में पहुंचा दिया.

रानी ने तेजस्वी कन्या लोपामुद्रा को जन्म दिया. अगस्त्य ने राजा से लोपामुद्रा का हाथ मांगा. राजा को मना करने का साहस तो नहीं था लेकिन बेटी का विवाह मुनि से करने को तैयार न थे.

लोपामुद्रा पिता की चिंता समझ गईं और उन्होंने अगस्त्य से स्वयं विवाह की इच्छा जताई. लोपामुद्रा और अगस्त्य मुनि का विवाह हो गया.

लोपामुद्रा ने एक मुनि से विवाह तो कर लिया परंतु राजसी वस्त्र और सुख त्यागना उनके लिए आसान न था. पर पति की इच्छा थी कि लोपामुद्रा साध्वी जीवन बिताएं.
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