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रौबदार व्यक्तित्व का एक युवक संत कबीर के पास आया. कबीर उस समय आंखें मूंदे भक्ति भजन में मगन थे. उनके साथ कई और लोग सत्संग कीर्तन में डूबे थे.

युवक बोला- गुरुजी! मैंने उच्च शिक्षा ली, पर्याप्त ज्ञान ग्रहण किया. विवेकशील हूं. अच्छे-बुरे का फर्क समझ सकता हूं. फिर भी मेरे माता-पिता मुझे सत्संग जाने को कहते हैं. इतना ज्ञानवान हो जाने पर मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है?

कबीरदासजी उस युवक की बात सुनते रहे और मंद-मंद मुस्कुराते रहे. युवक को लगा कि शायद अपना परिचय देने में कुछ कमी रह गई. कुछ और बताना चाहिए
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