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लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे. अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ. राज्याभिषेक पर श्रीराम ने अयोध्या में पधारे सभी ऋषियों-मुनियों को भरपूर दान दिया. सुग्रीव, युवराज अंगद, विभीषण और सभी वानर वीरों को भी बहुमूल्य उपहार दिए गए. वानरवीरों ने हनुमानजी से पूछा कि उन्हें क्या उपहार चाहिए? हनुमानजी ने कहा कि मुझे ऐसा उपहार चाहिए जिसमें मेरे आराध्य की छवि दिखती रहे.

भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक पर सभी देवता भी आमंत्रित थे. सबने कुछ न कुछ उपहार भी दिया था. पवनदेव ने दिव्य रत्नों से जड़ा एक सुंदर हार प्रभु को भेंट किया. श्रीरामजी ने वह हार देवी सीता के गले में डाल दी. देवी सीता ने देखा कि सभी वानरवीरों को उपहार मिला किंतु हनुमानजी का हाथ खाली है. अशोक वाटिका में देवी सीता ने हनुमानजी को पुत्र का दर्जा दिया था. सीताजी ने अपने गले से हार निकाला और श्रीराम के पास गईं. उन्होंने प्रभु से कहा कि मैं अपने पुत्र को यह हार देना चाहती हूं. आपकी आज्ञा चाहिए.

श्रीराम ने कहा- माता की हर संपत्ति पर संतान का अधिकार होता है. आप अपने पुत्र को हार भेंट कर सकती हैं. देवताओं को आश्चर्य हुआ कि सीताजी की संतान कहां से आई. वह तो वनवास से लौटी हैं. तभी देवी सीता ने हार हनुमानजी के गले में पहना दिया. सीताजी द्वारा बजरंग बली को अपना पुत्र कहने से सभी देवगण हनुमानजी की वंदना करने लगे. लेकिन बजरंग बली के चेहरे पर खुशी का कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ा.
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