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भवन से बाहर आये तो उन्हें ऐसी बहुत सी चीजें दिखाई दे रही थीं जिसे उन्होंने बनाया ही नहीं थी. उन्हें लगा कि अब बनाने को क्या बाकी रह गया. सृष्टि रचना का शेष कार्य तो मेरे रचने से पहले ही पूरा हो ही चुका है. जो चीजें बनाने की सोच रखी थी वह किसी और ने कैसे रच दी!

यह सब देखकर अचकचाये और अचरज से भरकर ब्रह्माजी ने सूर्य भगवान से पूछा- यह कैसा अचरज है, संसार को रचने की, सृष्टि निर्माण की क्षमता तो केवल मुझे ही मिली है, फिर मेरे शयन काल में किसने कर दी ये रचनाएं.

यह सृष्टि किसने रचकर तैयार कर दी? सूर्य बोले- ब्रह्माजी यह तो आपने सिर्फ पूर्व दिशा की ओर ही दृष्टि डाली है, आपने अभी पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ईशान आदि शेष नौ दिशाओं और आकाश तथा पाताल को तो देखा ही नहीं.

प्रजापति ने दशों दिशाओं की ओर घूमकर देखा तो उन्हें सभी जगह एक से एक बढ कर नयी चीजें दिखी, उनका शक और गहरा हो गया कि ज़रूर कोई चक्कर है. ब्रह्मा ने सूर्य से कहा- सूर्यनारायण! अब और अधिक पहेली मत बुझाइये.

आपसे तो कुछ भी छिपा नहीं. आप निरंतर अपने रथ पर चलते ही रहते हैं, कृपया अब तो बता दीजिये कि यह सब सृष्टियाँ रचीं किसने? मुझ जैसी क्षमता किसी में आईं तो आखिर किसके वरदान से और कैसे आई?

सूर्य भगवान ने तब ब्रहमा जी को बताया- हे प्रजापति! आपने जो पहले जो सृष्टि रची थी उसमें इन्दु नामक एक ब्राह्मण भी था. जब उसके के बहुत समय तक कोई सन्तान न हुई, तो वह बहुत दुखी हुआ और उसने भगवान् शिव की घोर पूजा की.
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