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तुम अपने को किसान कहते हो, इसलिए आज से अगले साल तक तुम्हारे हाथ का पानी जिस पौधे को छुएगा, वह पौधा मर जाएगा. इतना कह कर देवी अंतरधान हो गयीं. सवेरा होने को था, रामनारायण भी शहर चल पड़ा.

शहर जाते हुए रामनारायण चिंता में मरा जा रहा था कि ऐसा ही रहा तो वह साल भर खेती किये बिना जीयेगा कैसे? शहर में किसान मेला लगा हुआ था. इसे देखने राजा भी आया हुआ था. किसानों ने राजा को बताया एक विचित्र प्रकार की घास फ़सलों को बरबाद कर रही है.

खास बात यह कि जड़ से निकाल देने पर भी वह बार-बार उग आती है. किसान भीषण कष्ट में थे. राजा को यह बात पता थी पर वह किसानों को कोई दिलासा न दे पाने से दुखी था.

रामनारायण ने राजा को प्रणाम कर कहा, ‘‘महाराज! मुझे मौक़ा दें, मैं साल भर में इस अनोखी घास के पौधों को जड़ समेत सफाया कर सकता हूँ. राजा ने कहा पहले सबूत दो कि ऐसा कर सकते हो. देवी मां के शाप से रामनारायण ने कर दिखाया.

अब तो राजा ने उसके लिए हर तरह का प्रबंध किया. रामनारायण ने अपने साथ सहायकों को लेकर गांव गांव घूमा. उसका हर जगह खूब खातिर होता फ़सल के बोने के पहले वह अपने हाथ से सभी खेतों को पानी दिया. खेत में पहले से जो भी पौधे थे साफ हो गये.

रामनारायण को किसान मेला के जरिये जो घूमने खाने को मिला तो ऐसा चस्का लगा कि अगले साल उन्हीं दिनों में फिर शहर की ओर निकल पड़ा. जाते हुए चण्डमुखी मंदिर के पास पहुँचा तो अंधेरा हो गया.

उस मंदिर में ही आराम करने को रुका, देवी आधी रात को पहले ही की तरह चाबुक लिये आईं.

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