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उन्होंने दिति से कहा- तुम्हें ऐसे पुत्र का वरदान मिल सकता है लेकिन इसके लिए तुम्हें एक वर्ष तक कठोर पुंसवन व्रत का पालन करना होगा. यदि व्रत में चूक हुई तो तुम्हारा पुत्र इंद्र का शत्रु नहीं बल्कि मित्र हो जाएगा.
इंद्रघाती पुत्र के लिए दिति कठोर नियमों वाले पुंसवन व्रत को राजी हो गईं. व्रत का एक नियम यह भी था कि दिति जूठे मुंह नहीं सो सकतीं. यदि जूठे मुंह सोईं तो गर्भ की रक्षा करने वाला तेज समाप्त हो जाएगा.
इंद्र को जब पता चला कि दिति उनके हत्यारे पुत्र के लिए कठोर व्रत कर रही हैं तो वह वेष बदलकर पिता के आश्रम में रहने लगे और सौतेली माता की खूब सेवा करते.
इंद्र दिति के गर्भ का नाश करने के लिए ताक लगाए रहे. कठोर व्रत से कमजोर हुई दिति को एक दिन जूठे मुख ही नींद आ गई. इंद्र के लिए यह एक अच्छा अवसर था.
इंद्र दिति के गर्भ में प्रवेश कर गए. सोने के समान चमकते गर्भ को इंद्र ने सात टुकड़े कर दिए तो गर्भ रोने लगा. घबराकर इंद्र ने उन सातों के भी सात-सात टुकड़े कर दिए.
दिति ने गर्भकाल में नारायण की घोर उपासना की थी इस कारण शिशु अवध्य हो गया था. इंद्र और टुकड़े करने को तैयार हुए तो शिशुओं ने कहा- हम तो तुम्हारे भाई मरूदगण हैं. हमारा वध क्यों करते हो.
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