[sc:fb]

जीमूतवाहन को यह सुनकर बड़ा दुख हुआ.

उन्होंने उस वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा- डरो मत. मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा. आज उसके स्थान पर स्वयं मैं अपने आपको उसके लाल कपडे में ढंककर वध्य-शिला पर लेटूंगा ताकि गरूड मुझे खा जाए पर तुम्हारा पुत्र बच जाए.

इतना कहकर जीमूतवाहन ने शंखचूड के हाथ से लाल कपडा ले लिया और वे उसे लपेटकर गरुड को बलि देने के लिए चुनी गई वध्य-शिला पर लेट गए.

नियत समय पर गरुड बडे वेग से आए और वे लाल कपडे में ढंके जीमूतवाहन को पंजे में दबोचकर पहाड के शिखर पर जाकर बैठ गए.

गरूड़ ने अपनी कठोर चोंच का प्रहार किया और जीमूतवाहन के शरीर से मांस का बड़ा हिस्सा नोच लिया. इसकी पीड़ा से जीमूतवाहन की आंखों से आंसू बह निकले और वह दर्द से कराहने लगे.

अपने पंजे में जकड़े प्राणी की आंखों में से आंसू और मुंह से कराह सुनकर गरुड बडे आश्चर्य में पड गए क्योंकि ऐसा पहले कभी न हुआ था. उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा.

जीमूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया कि कैसे एक स्त्री के पुत्र की रक्षा के लिए वह अपने प्राण देने आए हैं. आप मुझे खाकर भूख शांत करें.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here