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मोहिनी ने कहा- हे ब्रह्म देव! मेरी बहुत दिनों से इच्छा है कि आपसे प्रेम करूं, अब तो मेरा तन-मन आपके प्रेम की अभिलाषा रखता है. कृपया आप मेरा प्रेम निवेदन स्वीकार करें और मुझे प्रेमदान करें.

ब्रह्माजी भी एक क्षण के लिए मोहिनी के सौंदर्य को देखकर डिगने लगे पर तभी उन्हें प्रभु की याद हो आयी. उनका मन शुद्ध हो गया. उन्होंने स्वयं पर नियंत्रण बनाए रखा.

कुछ देर वह चुप रहे और मोहिनी को कोई उत्तर न दिया. मोहिनी उनके समीप खड़ी होकर प्रतीक्षा करती रही. तब ब्रह्माजी मोहिनी को उपदेश देने लगे कि उसे वासना की इच्छा रखना उचित नहीं है.

ब्रह्माजी उसे उपदेश करने लगे- तप के बल से तुम अपनी इंद्रियों को वश में कर सकती हो. जैसे सभी जीवों की रचना करके भी मैं माया के प्रभाव से अछूता हूं वैसे तुम भी हो सकती हो. हालांकि यह मेरे अलावा किसी अन्य के लिए बहुत कठिन है.

उधर ब्रह्माजी ज्ञान के साथ-साथ कुछ अपनी प्रशंसा भी किए जा रहे थे इधर मोहिनी पर वासना हावी होती जाती थी. आखिर वह अप्सरा ठहरी. उसने ब्रह्माजी को रिझाने के लिए कुछ उत्तेजक भाव-भंगिमाएं बनानी शुरू कीं.

स्वर्ग की अप्सराओं के पास भी सम्मोहन की दिव्य विद्या हैं. मोहिनी ने सभी विद्याओं का प्रयोग आरंभ कर दिया. वह जितना ज्यादा ब्रह्माजी को रिझाने का प्रयास करती ब्रह्माजी उतना ही प्रवचन करते जाते.

जब मोहिनी ने कामदेव, बसंत सबका आह्वान कर ब्रह्माजी पर मोहनी विद्या का प्रयोग करना शुरू किया और उनकी गोद में आ बैठी. ब्रह्माजी भी घबरा गए. वह भगवान श्रीहरि का नाम लगातार जपने लगे.
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