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प्रभु की कृपा से उसी समय सप्तऋषि ब्रह्मलोक को पधारे. सप्तऋषियों ने ब्रह्माजी से सटकर बैठी मोहिनी को देखकर उनसे पूछ ही लिया- यह अप्सरा आपके साथ क्यों बैठी है?

ब्रह्माजी बोले- असल में यह यहां नृत्य कर रही थी. नृत्य करते-करते थक गई थी, तो जरा सुस्ताने के लिए मेरे समीप आ बैठी है. कोई और बात नहीं. मैंने इसे पुत्री भाव से ही देखा है.

सप्तऋषियों से जिस तरह ब्रह्माजी ने बात की उसमें छुपाने वाले भाव के साथ-साथ कुछ अहंकार भी भरा था. सप्तर्षि समझ गए कि कामभावना को नियंत्रण में रखने का ब्रह्माजी को अहंकार हो गया है. अन्यथा उन्हें ऐसा कहने की आवश्यकता ही न थी.

अपने योग बल से वे जान गए कि ब्रह्माजी जो कह रहे हैं बात वैसी है नहीं. वे उनकी घबराहट और इस झूठ पर हंसते हुए वहां से चले गए. ब्रह्माजी द्वारा सप्तर्षियों के समक्ष पुत्री कहने से मोहिनी को बड़ा क्रोध आया.

मोहिनी बोली- मैं आपसे आपका थोड़ा संग साथ, संसर्ग, अपनी काम इच्छाओं की पूर्ति भर चाहती थी और आपने मुझे बेटी कह दिया. आपको अपने संयम पर बड़ा घमंड है.

आपने मेरे सच्चे प्रेम को ठुकराया है, यदि मैं सच्चे ह्रदय से आपसे प्रेम करती हूं तो अब से जगत में आपको कहीं पूजा नहीं जाएगा और आपका घमंड भी जल्द ही हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.
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