jai-Shri-Shanidev_13

पौराणिक कथाएँ, व्रत त्यौहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र, गीता ज्ञान-अमृत, श्रीराम शलाका प्रश्नावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ने के हमारा लोकप्रिय ऐप्प “प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प” डाउनलोड करें.
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें

हमारा फेसबुक पेज लाइक कर लें. आपको प्रभु शरणम् के पोस्ट की सूचना मिलती रहेगी. यहां शेयर करने योग्य अच्छी-अच्छी धार्मिक पोस्ट आती है जिसे आप मित्रों से शेयर कर सकते हैं.

इस लाइन के नीचे हमारे फेसबुक पेज का लिंक है उसे क्लिक करके लाइक कर लें.
[sc:fb]

आपने शनि चालीसा पढ़ी होगी. उसमें इस प्रकार से दोहे आते हैं-

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगली गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तैलिहिं घर कोल्हू चलवायो।।

आपने चालीसा पढ़ी तो अनेकों बार पर क्या इन पदों के पीछे की कथा जानते है. शनिदेव का भूले से भी अपमान हो जाए तो क्या-क्या संकट आ जाते हैं. आपको आज वह कथा सुनाते हैं.

उज्जैन में नवरात्र के प्रत्येक दिन बड़े-बड़े विद्वानों का जमावड़ा लगता था और प्रत्येक दिन एक ग्रह पर धर्मचर्चा होती थी. विक्रमादित्य स्वयं बहुत बड़े विद्वान थे. वह इस चर्चा में सक्रिय रहते थे.

नवरात्र के आखिरी दिन चर्चा शनि ग्रह को लेकर शुरू हुई थी. शनि आराधना और शनि प्रभाव पर सुंदर चर्चा चल रही थी कि अचानक विक्रमादित्य ने उसे तीखा रूप दे दिया.

सम्राट विक्रमादित्य ने अचानक ही कह दिया कि शनिदेव की तो पूजा ही नहीं करनी चाहिए. वह पूजन योग्य हैं ही नहीं. विक्रमादित्य की बात से सभी विद्वान हैरान थे. उन्होंने राजा से कहा कि वह ऐसा क्यों कह रहे हैं. उन्हें ऐसा कहना शोभा नहीं देता.

विक्रमादित्य भी अपनी बात पर जमे रहे. वह पीछे हटने को तैयार न थे. उन्होंने तर्क देना शुरू कर दिया.

विक्रमादित्य बोले- शनि ने अपने पिता सूर्य और गुरु बृहस्पति को बहुत कष्ट दिया. जो पिता और गुरू का सम्मान न करे, उन्हें सिर्फ कष्ट पहुंचाए वह सम्मान का अधिकारी कैसे होगा?

शनि लोगों को भी सिर्फ सताते ही हैं इसलिए उनकी पूजा नहीं होनी चाहिए. जो देव ऐसे प्रतिशोध के भाव रखे उसकी पूजा तो होनी ही नहीं चाहिए.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here