महाभारत के युद्ध का यह अंतिम दिन था. द्वापर युग के अंत में कुरुक्षेत्र का महायुद्ध समाप्ति की ओर था. दिन के अंत तक अहंकारी कौरवों को पराजित कर पांडवों ने विजय प्राप्त कर ली.

भगवान् श्रीकृष्ण को ज्ञात था कि अंतिम दिन काल कुछ चक्र चलाएगा जरूर. इसके निवारण हेतु श्रीकृष्ण ने आदिदेव भगवान शिव की विशेष स्तुति आरंभ कर दी.

श्रीकृष्ण ने कहा- हे जगत के पालनकर्ता, सब भूतों के स्वामी, सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाने वाले रूद्र! मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ. भगवन! आप मेरे भक्त पांडवों की रक्षा कीजिये.

स्तुति सुनकर भगवान् शंकर नंदी पर सवार हो हाथ में त्रिशूल लिए पांडवों के शिविर की रक्षा के लिए आ गए. उस समय महाराज युधिष्ठिर की आज्ञा से भगवान् श्रीकृष्ण हस्तिनापुर गये थे अन्य पांडव सरस्वती के किनारे शिविर में थे.

मध्यरात्रि में अश्वत्थामा, भोज (कृतवर्मा) और कृपाचार्य– ये तीनों पांडव शिविर के पास आए. उन सभी ने भगवान् रूद्र को तैनात देखा तो ठिठके. परंतु उनकी स्तुति करके अंतत: उन्हें प्रसन्न कर लिया.

भगवान् शंकर ने अश्वत्थामा को एक विशेष तलवार प्रदान की और उन तीनों को ही पांड़वों के शिविर में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी. अश्वत्थामा ने महादेव द्वारा प्राप्त तलवार से धृष्टद्युमन जैसे कई वीरों की हत्या कर दी.

फिर वह कृपाचार्य और कृतवर्मा के साथ वापस चला गया. शिविर में एकमात्र बचे पार्षद सूत ने इस जनसंहार की सूचना पांडवों को दी. भीम सहित सभी पांडवों ने इसे शिवजी का ही किया धरा समझा.

वे क्रोध में मर्यादा भूल कर भगवान शंकर से युद्ध करने लगे. पांडवों द्वारा जो भी अस्त्र-शस्त्र चलाये गये वे शिवजी के शरीर में जा कर जाने कहां विलीन हो गये.

चूंकि पांडव श्रीकृष्ण की शरण में थे और महादेव हरिभक्तों की रक्षा को स्वयं तत्पर रहते हैं. इसलिए शांत स्वरूप भगवान शिव ने कहा- तुम श्रीकृष्ण के उपासक हो इसलिए क्षमा करता हूं, अन्यथा सभी वध के योग्य हो.

मुझ पर आक्रमण के इस अपराध का फल तुम्हें कलियुग में जन्म लेकर भोगना पड़ेगा. ऐसा कहकर भगवान शंकर अदृश्य हो गए. दुखी पांडव पापमुक्ति की राह पूछने भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में आए.

अपने हथियार गंवा चुके और निराश तथा दुःखी पांडवों ने श्रीकृष्ण के साथ एकाग्र मन से शंकर जी की स्तुति की जिससे प्रसन्न हो भगवान शंकर प्रकट हुए और उनसे वर मांगने को कहा.

पांडवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण बोले– हे भगवन, पांडवों के जो शस्त्रास्त्र आपके शरीर में विलीन हो गए हैं, उन्हें वापस कर दीजिए. इन्हें आपने जो श्राप दे दिया है उससे भी मुक्त कर दीजिए.

आदि देव भगवान शिवजी ने कहा– हे श्रीकृष्ण! उस समय मैं आपकी माया से मोहित था. उसी माया में पड़कर ही मैंने यह शाप दे दिया. मेरा वचन तो नहीं बदल सकता. मुक्ति का मार्ग बताता हूं.

पांडव तथा कौरव अपने अपने अंशों से कलियुग में जन्म लेकर अपने पापों का फल भोगकर अपने पापों और मेरे शापों से मुक्त हो जायेंगें. युधिष्ठिर वत्सराज का पुत्र बनकर पैदा होगा.

उसका नाम बलखानि (मलखान) रखा जाएगा. वह शिरीष नगर का राजा होगा. भीम वीरण के नाम से बनारस पर राज करेगा. अर्जुन के अंश से जो जन्म लेगा, उसका नाम होगा ब्रह्मानंद होगा. वह महान बुद्धिमान और मेरा भक्त होगा.

महाबलशाली नकुल का जन्म कान्यकुब्ज में रत्नभानु के पुत्र के रूप में होगा और नाम होगा लक्षण. सहदेव भीमसिंह का पुत्र देवसिंह होगा. धृतराष्ट्र के अंश से अजमेर में पृथ्वी राज जन्म लेगा.

द्रोपदी पृथ्वीराज की कन्या के रूप में वेला नाम से प्रसिद्ध होगी. महादानी कर्ण तारक नाम से जन्मेगा. यह सब बातें सुनकर भगवान श्रीकृष्ण मुस्कराए.

श्रीकृष्ण ने कहा- मैं भी अवतार लेकर पांडवों की सहायता करूँगा. माया देवी द्वारा निर्मित महावती नाम की नगरी में देशराज के पुत्र-रूप में मेरा अंश उत्पन्न होगा.

मेरे इस लोग कृष्णांश को जगत उदयसिंह (ऊदल) के नाम से जानेगा. उसे जो जन्म देंगी वह भी देवकी की ही अंश होंगी. मेरे वैकुण्ठ धाम का अंश आह्राद नाम से जन्म लेगा.

आह्लाद ही इस जन्म में मेरा गुरु होगा. अग्निवंश में उत्पन्न राजाओं का विनाश कर मैं धर्म की स्थापना करूँगा. श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर शिवजी अंतर्धान हो गए.
(संदर्भ: भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व का तीसरा खंड के पहले अध्याय से व अन्य)

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

सभी प्रभु प्रेमियों को नमस्कार. मित्रों, हमने पहले भी कहा है कि वेद-पुराण-उपनिषद आदि ग्रंथ हमारे पूर्वजों की धरोहर हैं. मैं खुद को इतना सक्षम नहीं पाता हूं कि पूर्वजों के ज्ञान को चुनौती दे सकूं. आस्था और भक्ति तर्क से ऊपर की चीज है. प्रभु की लीला तो प्रभु ही जानें.

पिता, अपने पुत्र को बचपन में कोई ज्ञान देता है और पुत्र इसे स्वीकारने पहले यह नहीं पूछता कि पिताजी आप मेरी डीएनए रिपोर्ट दिखाइए. वह तो पिता-पुत्र के बीच स्नेह का बंधन है. ईश्वर से हमारा भी बंधन ऐसा ही हो.

हम पुराणों में जो गूढ़ बातें कही गई हैं. जो कथाएं हैं, उन्हें आपके समक्ष रखते हैं. आप उन्हें किस रूप में लेते हैं यह आपके विवेक पर छोड़ता हूं. मैं तो इसे सादर भाव से स्वीकार करता हूं, इसलिए आपके समक्ष रखता हूं.

-राजन प्रकाश

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