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सिंहल नाम के देश का राजा था चंद्रसेन, वह बड़ा धर्मात्मा, शूरवीर और प्रजापालक था. चंद्रसेन की पत्नी गुणवती ने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया मंदोदरी.

मंदोदरी जब विवाह के लायक हुई तो राजा चंद्रसेन ने उसके लिये वर ढूंढना शुरू किया. बहुत तलाशने के बाद मद्र देश के राजा सुधन्वा का बेटा उनको मंदोदरी के लिये सबसे उत्तम लगा. पत्नी गुणवती भी सुधन्वा के बेटे कम्बुग्रीव से मंदोदरी का विवाह करने पर राजी थी.

पर मंदोदरी सहमत न थी. उसने कह दिया कि वह कतई शादी नहीं करेगी. शादी एक गुलामी है और वह जिंदगी भर स्वतंत्र रहना चाहती है. बेटी की बात सुनकर रानी ने चंद्रसेन को साफ बता दिया कि मंदोदरी को विवाह में कोई रुचि नहीं उसने तो जीवन भर के लिये कुमारीव्रत ले लिया है.

यह सुनकर राजा ने मंदोदरी के विवाह के प्रयत्न छोड़ दिये. कुछ बरस बीत गये तो एक बार सखियों के साथ वनविहार करते हुये उसका सामना कोसल नरेश वीरसेन ने उसे देखा, वीरसेन उसकी सुंदरता देखते ही उस पर मुग्ध हो गया और उसकी सखी सैर्न्ध्री से बोला, मैं राजकुमारी को चाहता हूं और अभी तक कुंवारा हूं. उससे शादी करना चाहता हूं.

सैरंध्री ने वीरसेन का प्रस्ताव राजा चंद्रसेन से कहा तो उन्होंनेइस के लिये उसे मंदोदरी को मनाने को कहा. पर मंदोदरी का दो टूक जवाब था कि वह किसी से भे कभी विवाह न करेगी. वीरसेन बेशर्मों की तरह क्यों मुझ पर आंखें गड़ाये है. सैरंध्री ने वीरसेन को मना कर दिया.

मंदोदरी की एक छोटी बहन थी इंदुमती, वह विवाह के लायक हो चली थी. राजा ने उसके लिये स्वयंवर आयोजित किया. इंदुमती ने एक सुंदर और बलशाली राजकुमार के गले वरमाला डाल दी तो यह देख मंदोदरी के मन में भी कामभाव जागा. उसकी भी नजर में एक सजीला राजकुमार जंच गया. चंद्रसेन को अपने दिल की बात मंदोदरी ने बता दी.

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