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मंदोदरी ने पूछा- इसमें है क्या? रावण के लिये ऋषि मुनि जो लोगों को धर्म और सदाचार की राह दिखाते थे उनकी रगों में बहने वाला रक्त जहर बराबर ही था. अत: रावण ने कहा, इसमें दुनिया का सबसे विषैला जहर है.

यह कहकर रावण विश्वविजय को चला गया और फिर कई बरस नहीं लौटा. रावण ने समस्त लोक जीत लिए.

ताकत के घमंड में चूर उसने दानवों, यक्षों, गंधर्वों की सुंदरतम कन्याओं को अपने साथ ले जाकर मंदराचल, हिमवान और मेरू जैसे पर्वतों और जंगलों में भोग-विलास में रत रहने लगा.

मंदोदरी रावण का इंतज़ार करती रही. पति की इस उपेक्षा ने उसे बहुत दुःखी कर दिया था.

दूसरी स्त्रियों के कारण पति ने अपनी प्रिय पत्नी की बरसों खोज खबर न ली, यह सोचकर मंदोदरी बहुत दुखी थीं.

उन्हें जीवन व्यर्थ लगा और उन्होंने इसे त्यागने का विचार किया.

मंदोदरी को रावण द्वारा दिए गए विषैले घड़े की याद आई. उसमें जो भी काला काला सा तरल था उसे विष समझ कर मंदोदरी एक झटके में पी गयी.

उसे पीने के बाद मंदोदरी मरी नहीं, ऋषि गत्समद द्वारा घड़े में मंत्र पढकर डाले गये दूध की दो चार बूंदे और माता लक्ष्मी का प्रभाव खून पर हावी रहा.

इसका प्रभाव यह हुआ कि मंदोदरी को गर्भ ठहर गया. कुछ दिनों बाद यह राज जब मंदोदरी पर उजागर हुआ तो वह घबरा गई.

जब उसके पति रावण भी यहां पिछले कई वर्षों से नहीं हैं फिर भी वह गर्भवती हो गई है. यह सब कैसे हुआ मंदोदरी यह सोचकर तो परेशान थी ही साथ ही उसे भया था कि उसके अखंड पातिव्रत्य पर लांछन लगेगा.

महल की अन्य स्त्रियां उसे कुलटा कहेंगी, उसका कोई सम्मान न करेगा.

यह सब सोचकर मंदोदरी परेशान थी. उसे एक उपाय सूझा.

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