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भगवान श्रीराम की वानर सेना और रावण की राक्षस सेना के बीच युद्ध खिंचता चला जा रहा था.
श्रीराम के आघात से रावण युद्धभूमि में अचेत होकर गिर गया. चेतना लौटने पर उसने भगवती देवी की घोर स्तुति की और सहायता के लिए पुकारा.
देवी ने उसे एक बार वरदान दिया था कि जब वह संकट में फंस जाएगा और कातर होकर उनका स्मरण करेगा तो वह प्रकट होंगी. आज रावण के लिए उस वरदान का लाभ लेने का अवसर था.
देवी ने रावण को दर्शन दिए तो वह बिलख-बिलख कर रोने लगा. उसने देवी की हर प्रकार से स्तुति की और फिर प्रार्थना की कि आप मुझे अपनी शरण में ले लें.
भगवती ने उसकी सहायता का वचन दिया तो रावण ने उनसे कहा- हे माता यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी एक अभिलाषा पूर्ण कर दीजिए. मैं आपकी छत्रछाया में युद्ध करना चाहता हूं. आप मेरे रथ पर अपने आशीर्वाद के छत्र समान विद्यमान रहें. मैं बस आपसे यही आशीर्वाद चाहता हूं.
भगवती उसे वरदान दे चुकी थीं. इसलिए वह विवश थीं रावण का साथ देने के लिए.
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