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रावण देवी के साथ रथ पर सवार होकर युद्धभूमि में लौटा. माता की शक्तियों से संपन्न वह अजेय के भांति ललकार रहा था.

भगवान श्रीराम ने जब देखा कि स्वयं शक्ति उस रथ पर सवार हैं तो उन्होंने धनुष रखकर उन्हें प्रणाम किया. शिवा के रावण के रथ पर विराजमान होने से स्वयं श्रीराम भी चिंतित हो गए.

भगवान विभीषण से बोले- आज शिवा स्वयं रावण की रक्षा में आ गईं हैं. अब तो इसका वध असंभव है. अब क्या किया जाए?

श्रीरामजी की सेना में चिंता बढ़ गई. देवतागण भी इससे दुखी हो गए. भवानी की शक्ति से सुसज्जित रावण का वध श्रीराम नहीं करेंगे तो यह अवतार पूर्ण नहीं होगा. वे चिंतित होकर ब्रह्माजी के पास गए.

ब्रह्माजी ने कहा- गौरी देवी की आराधना की जाए और उन्हें प्रसन्न करके रावण के संहार का उपाय जान लिया जाए. श्रीराम को स्वयं भी देवी की आराधना करके विजय का आशीर्वाद लेना होगा.

इंद्र के साथ ब्रह्माजी श्रीराम के पास आए और उन्हें विधि के साथ देवी की आराधना करने की सलाह दी.

ब्रह्माजी ने उन्हें विस्तारपूर्वक देवी को प्रसन्न करने का विधि-विधान बताया.

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