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गधे ने कहा- सुनो पंडितजी महाराज, पिछले जन्म में मैं एक सम्राट का मंत्री था. सम्राट ने एक बार कहा कि मेरी उम्र हो गई, त्रिवेणी चलेंगे, संगम पर ही रहेंगे. इसका इंतजाम करो.

हम त्रिवेणी गए. त्रिवेणी का वातावरण ऐसा भाया सम्राट को कि उन्होंने वहीं शेष जीवन बिताने की ठान ली,

महाराज ने कहा- अब मैं वापस न जाउंगा. तुम्हें यहां रहना हो तो मेरे साथ ही रह जाओ और यदि वापिस लौटना हो तो ये करोड़ स्वर्णमुद्राएं हैं इन्हें ले लो और वापस चले जाओ.

मैंने महाराज से करोड़ मुद्राएं स्वर्ण की ले लीं और अवंतिका वापिस आ गया. त्रिवेणी पर वास का पुण्य छोड़कर मैं स्वर्ण मुद्राएं लेकर चला आया.

इस कारण मैं इस जन्म में गधा हुआ. इसी कारण से घड़ियाल आप पर हंसा.

कहानी प्रीतिकर है. बहुत से लोग हैं, जिनका ज्ञान उन्हीं को मुक्त नहीं कर पाता, बहुत हैं जिनके ज्ञान से उनके जीवन में कोई सुगंध नहीं आती. सब जानते तो हैं पर जानकर भी अंजान बने हैं तो फिर जानने का कोई लाभ नहीं है.

शास्त्र से परिचित हैं, शब्दों के मालिक हैं, तर्क का श्रृंगार है उनके पास, विवाद में उन्हें हरा न सकेंगे. आप लेकिन जीवन में वे हारते चले जाते हैं. उनका खुद का ज्ञान उनके जीवन में किसी काम नहीं आता.

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