किंकर कथा- डाकिनी राजकुमारी पहला भाग
काशी में प्रतापमुकुट नामक एक राजा था. उसका बेटा वज्रमुकुट बहुत सजीला नौजवान था. एक दिन राजकुमार वज्रमुकुट दीवान के लड़के को साथ लेकर शिकार खेलने जंगल को गया. घूमते-घूमते वे एक सुंदर तालाब के किनारे पहुंचे.
तालाब से सटा एक टीला था जिसपर महादेव का मंदिर था. दोनों मित्र तालाब के पानी में हाथ-मुंह धोकर मन्दिर गए. घोड़ों को उन्होंने मन्दिर के बाहर बाँध दिया. मन्दिर छोटा पर दर्शनीय था.
दोनो मंदिर में दर्शन करके बाहर आए तो देखा कि तालाब में एक राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई है. दीवान का लड़का तो मंदिर के पास एक पेड़ के नीचे बैठा रहा पर राजकुमार से न रहा गया. वह नीचे चला आया.
वह राजकुमारी को एकटक निहारने लगा. राजकुमारी ने भी उसकी ओर देखा तो वह उस पर मोहित हो गया. राजकुमारी भी उसकी तरफ़ कुछ देर तक देखती रही. फिर उसने एक अद्भुत उपक्रम किया.
राजकुमारी ने जूड़े में से कमल का फूल निकाला, फूल को अपने कान से लगाया. फिर उस फूल को दाँत से कुतरा, पैर के नीचे दबाया और उसके बाद सखियों की निगाह बचाकर छाती से लगा लिया. इसके बाद अपनी सखियों के साथ चली गयी.
उसके जाने पर राजकुमार निराश हो गया. वह निराश हो गया. बोझिल कदमों से ऊपर मंदिर तक अपने मित्र के पास आया. मित्र ने राजकुमार का हाल देखा तो पूछ ही लिया कि क्या बात है?
राजकुमार ने सारी बात बताई- मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता. पर दुर्भाग्य से मुझे न तो उसका नाम मालूम है, न कोई पता ठिकाना?
दीवान के लड़के ने कहा- राजकुमार, आप अधीर न हों. आपको इतना घबराने की आवश्यकता नहीं. राजकुमारी संकेत में बहुत कुछ बता गई है. राजकुमार हैरान तो था लेकिन इस बात से उसे राहत थी कि उसके मित्र को राह पता है.
दीवान पुत्र बोला- मित्र संकेत की भाषा भी होती है. आपने स्त्री के व्यवहार जो बताए उसके आधार पर मैंने बहुत कुछ अनुमान लगा लिया है. कमल का फूल सर से उतार कर कानों से लगाकर उसने बताया कि मैं कर्नाटक की रहने वाली है.
फूल को दांत से कुतरा तो उसका मतलब था कि मैं दंतबाट राजा की बेटी हूँ. पुन: पुष्प को पांव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है और छाती से लगाकर उसने यह बताया कि आप मेरे दिल में बस गये हो.
यह सुनकर राजकुमार खुशी से फूल उठा. वह बोला- मित्र तुम्हारी बुद्धिमानी अद्वितीय है. अब बिना विलंब किए कर्नाटक देश चलो और राजा दंतबाट के यहां रूकें.
दोनों मित्र कर्नाटक की ओर चले. कई दिनों की यात्रा के बाद दंतबाट के महल के पास पहुंचे. राजामहल में सीधा प्रवेश तो मुश्किल था. एक बुढ़िया अपने द्वार पर बैठी चरखा कातती मिली.
दोनों बुढ़िया से बोले- माई, हम दोनों सौदागर हैं. हमारा बहुत सा सामान हमारे पीछे आ रहा है. सामान आने में एक दो दिन लगेंगे. माई हमें रहने को थोड़ी जगह दे दो.
बुढ़िया ने दोनों को ध्यान से देखा. दोनों भले और सभ्य लग रहे थे, बातें मीठी कर रहे थे इसलिए दोनों की बातें सुनकर बुढ़िया के मन में ममता उमड़ी. उसने अपने घर में रहने का स्थान दिया. दोनों वहीं ठहर गए.
दीवान के बेटे ने बुढिया से पूछा- माई, तुम क्या करती हो? तुम्हारी गुज़र कैसे होती है? बुढ़िया बोली- मेरा एक बेटा है जो राजा की चाकरी में है. मैं अकेली ही रहती हूं.
मैं राजा की बेटी पद्मावती की धाय थी. बूढ़ी हो जाने से अब घर में रहती हू. राजा खाने-पीने को दे देता है राजा के आदेश और राजकुमारी से प्यार के चलते दिन में एक बार राजकुमारी को देखने महल जाती हूं.
राजकुमार ने बुढ़िया को कुछ धन दिया और कहा- कल तुम राजकुमारी से कहना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें एक तालाब पर जो राजकुमार मिला था, वह आ पहुंचा है.
अगले दिन बुढ़िया ने राजकुमार का सन्देशा पहुंचा दिया. राजकुमारी गुस्से से भड़क उठी. हाथों में चन्दन लगाकर बुढिया के गाल पर तमाचा मारा और कहा- जा मेरे महल से निकल जा. बुढ़िया ने जाकर सारा हाल राजकुमार को बताया.
राजकुमारी ने अपनी धाय पर क्रोध किया था या थप्पड़ में कोई गुप्त संदेश छुपा था. यह कथा बहुत लंबी परंतु बड़ी रोचक है. इसलिए हम इसे तीन भाग में प्रकाशित करेंगे. इसके शेष भाग कल पढ़िए. अभी 10 बजे आप साप्ताहिक राशिफल पढ़ सकेंगे.
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश