पिछली कथा से आगे…(शिवपुराण, रूद्र संहिता सती खंड-2)

ब्रह्माजी अपने पुत्र नारद को कथा सुना रहे हैं.

ब्रह्माजी बोले- हे नारद! अपनी पुत्री संध्या पर मोहित होने के कारण शिवजी ने मुझे खूब खरी-खोटी सुनाई. उपहास किया और क्रोधित भी हुए, जबकि मैं तो शिवजी की शक्ति से ही मोहित हुआ था.

मुझे भी शिवजी पर रोष हुआ. वह रोष धीरे-धीरे बैर भाव में बदल गया और मेरा मन ऐसा कलुषित हुआ कि मुझमें प्रतिशोध की भावना आ गई. मैं शिवजी से प्रतिशोध लेने की सोचने लगा.

इसी भाव से भटकता संयोगवश मैं वहां पहुंचा जहां दक्ष प्रजापित के साथ कामदेव और उनकी पत्नी रति बैठे किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे. दक्ष ने मेरे मन के भाव पढ़ लिए और कारण पूछा.

मैंने अपने पुत्र दक्ष एवं अन्य पुत्रों को आदेश दिया कि कोई ऐसी स्त्री खोजकर लाओ जो संसार में अपूर्व सुंदरी हो. जो महादेव को अपने सौंदर्य में मोह सके. मैंने कामदेव का उत्साह बढ़ाने के लिए कह दिया कि आपके समान संसार में सौंदर्य का पारखी कोई नहीं.

कामदेव आपके प्रभाव से संसार में कोई नहीं बच सकता. इसलिए आप यह करने में समर्थ हैं. किसी को यह आभास न हो कि मैं यह सब अपने प्रतिशोध के लिए कर रहा हूं मैंने कह दिया कि यह जगत के कल्याण के लिए जरूरी है.

कामदेव को मैंने साहस देने के लिए कहा कि तुम शिवजी पर हमेशा निष्फल रहे हो. इस बार तुम सफल होकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर सकते हो और जगत के कल्याणकारी कार्य में सहयोगी भी बनोगे.

कामदेव इस बात से फूल गए. वह बोले- आपकी आज्ञा सिरोधार्य है किंतु पुरुष को मोहित करने के लिए मेरा अस्त्र तो कोई रूपवान स्त्री ही हो सकती है. आपको एक ऐसी सुंदरी की रचना करनी होगी जिसे देखकर शिवजी के मन में भी भोग की इच्छा जागे.

कामदेव ने असंभव सी बात कह दी थी. ऐसी सुंदरी का निर्माण कैसे करूं इसी कल्पना में डूबे मैंने गहरी सांस ली. इससे वसंत की उत्पत्ति हुई. वसंत सुंदरी को मैंने कामदेव के साथ भेजकर कार्य आरंभ करने को कहा किंतु वसंत को भी सफलता नहीं मिली.

निराश होकर मैं विष्णुजी का ध्यान करने लगा. श्रीहरि ने दर्शन दिए और मैंने उनसे शिवजी को विवाह के लिए सहमत करने का उपाय बताने की प्रार्थना की. श्रीहरि तो सब समझ गए पर कहा कुछ नहीं.

वह बोले- ब्रह्मदेव! आपको शायद स्मरण नहीं है. शिवजी ने आपको सृष्टि की रचना और मुझे पालन का दायित्व सौंपते हुए कहा था कि वह रूद्र के रूप में सृष्टि का संहार करेंगे.

जिस प्रकार निर्गुण मैंने ब्रह्मा, विष्णु और शिव, ये तीन रूप धारण किए हैं उसी तरह उमा भी तीन- विष्णुपत्नी लक्ष्मी, ब्रह्मापत्नी सरस्वती और रुद्राणी सती का रूप धारण करेंगी. अभी शिव-सती का संयोग होना बाकी है.

शिवा सती नाम से अवतार लेने वाली हैं. आप उस समय की प्रतीक्षा कीजिए. यह बताकर श्रीहरि चले गए तो मैं भगवती को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति करने लगा. भगवती प्रसन्न हो गईं. उन्होंने मुझसे आह्वान करने का कारण पूछा.

मैंने कहा- देवी, रूद्र के साथ आपका संयोग पूर्वनिर्धारित है. इसमें विलंब क्यों. आप दक्ष के घर में जन्म लेकर अपने सौंदर्य से शिवजी को मोहितकर उन्हें विवाह के लिए शीघ्र प्रेरित करें. भगवती ने कहा- ऐसा ही होगा. फिर अंतर्धान हो गईं.

इसके बाद मैंने दक्ष को सारी बात बताकर क्षीर सागर के तट पर भगवती शिवा की आराधना का आदेश दिया. दक्ष की आराधना से भगवती शिवा प्रकट हुईं और उसका अभीष्ट पूछा.

दक्ष ने उनसे पुत्री रूप में प्रकट होकर शिवजी से विवाह करने का वरदान मांगा. भगवती ने दक्ष को अभीष्ट वरदान दिया लेकिन एक शर्त भी रखी- जिस दिन मैं अपने प्रति आपके मन में आदर का अभाव देखूंगी आपका त्याग कर दूंगी.

भगवती ने दक्ष को कहा था कि वह दक्षपुत्री के रूप में अवतार लेकर घोर तप से शिवजी को प्रसन्नकर उनसे पत्नी बनने का वरदान लूंगी. नारद, इस प्रकार मेरी अभिलाषा पूर्ण होने वाली थी.

ब्रह्मा नारद को कथा सुनाते रहे- हे नारद! मुझे मोहित देखकर मेरा उपहास करने वाले शिवजी भी शीघ्र मोहित होंगे, यह सुनकर मैं बहुत प्रसन्न था. क्रमशः जारी ….

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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