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शिवपुराण की कथा ब्रह्माजी अपने पुत्र नारद को सुना रहे हैं. पिछली कथा से आगे,

सती ने श्रीराम की परीक्षा के लिए सीता का रूप लिया था. इस बात का उन्हें भी पश्चाताप हो रहा था. वह सोच रही थीं कि अब शिवजी का सामना कैसे करूंगी. वह जो प्रश्न करेंगे उनका क्या उत्तर दूंगी. मैंने तो स्वामी के वचन पर भी शंका की है.

इसी चिंता में भरी वह दुखी हृदय से वहां पहुंची जहां शिवजी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने आशा के अनुसार सतीजी से पहला प्रश्न यही किया- श्रीराम की परीक्षा आपने कैसे ली? क्या संतुष्टि हुई या कोई संशय अभी शेष है?

सतीजी के मुख से कुछ नहीं निकला. वह टाल-मोटल करती रहीं. महादेव इस प्रश्न को छोड़ दें उसने मन में बार-बार यही भाव आ रहे थे. शिवजी पूछते रहेस सतीजी टालती रहीं.

सर्वज्ञ भगवान के लिए क्या समस्या. उन्होंने आंख मूंदकर ध्यान किया और सबकुछ जान लिया. सती ने क्षणभर के लिए ही सही लेकिन जो रूप लिया था, शिवजी उनकी वंदना करते थे.
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