दैत्य कुल में जन्मा शाल्व भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये निराहार रहकर घोर तप कर रहा था. वह यह परम शक्तिमान बनने के लिये कर रहा था. साधना सफल हुई. तप से भगवन शिव प्रसन्न हुये और दर्शन देकर बोले क्या चाहते हो कहो.

शाल्व बोला, प्रभो मुझे एक ऐसा विमान दीजिये जैसा किसी के पास न हो. उस विमान पर बैठ मैं अपने शत्रुओं पर ऊपर से हमले कर उनको परास्त करूं. इस विमान को देव, दानव, मानव, यक्ष, गंधर्व, कोई भी नष्ट न कर सके.

महादेव जी बोले, ऐसा ही होगा. पर इतना याद रखना. ब्रह्म के सिवा कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका अंत नहीं है. समय आने पर किसी न किसी विधि से हर वस्तु को समाप्त होना ही है.

वर दिया जा चुका था. दानवों के विश्वकर्मा कहे जाने वाले मय ने शाल्व के लिये अद्भुत शक्तियों से लैस एक शानदार युद्धक विमान तैयार कर के उसे दे दिया. शाल्व शिशुपाल का मित्र था.

राजसूय यज्ञ में अग्रपूजा के दौरान शिशुपाल ने जो अभद्रता की, उसकी उद्दंडता तथा दूसरे विवादों के चलते उसको भगवान श्री कृष्ण ने उसे मार डाला था. शाल्व तभी से अपने मित्र का बदला लेना चाहता था.

शाल्व न केवल भगवान श्री कृष्ण को बल्कि पूरे सभी प्रमुख यदुवंशियों समेत यदुवंश को ही समाप्त करने की प्रतिज्ञा कर चुका था. शाल्व ने कहा- कृष्ण जरासंघ के भय से समुद्र के भीतर बीच टापू पर द्वारका नगरी बसा कर छिप गये. पर अब न बचेंगे.

शाल्व ने अपने सेनापति से कहा कि समुद्र में बसी द्वारका का दुर्ग अभेद्य है. घुसना संभव नहीं पर आकाश मार्ग से उस पर हमला हो सकता है. वे भ्रम में रहेंगे और हम आकाशमार्ग से आक्रमण कर देंगे.

द्वारका में इस बात की भनक लग गयी कि शाल्व धावा बोल सकता है. इसे देखते हुये उग्रसेन ने आदेश दे दिया कि कोई ताड़ी न पीये न मद्यपान करे. नगर में आने जाने वालों पर कड़ी निगरानी रखी जाए.

दुर्ग पर पर लगे यंत्रों का निरीक्षण किया जाये तथा किले के अंदर तरह-तरह के हथियारों, पत्थर फेंकने वाली मशीनें दुरुस्त रहें. जहां कहीं भी समुद्र पार करने के पुल हैं उन्हें तोड़ दिया जाए.

जहाजों को रोक दिया जाए. किले के चारों ओर की खाइयों में सूलियां लगा दी जाएं. पर किसी को नहीं पता था कि शाल्व तो विमान द्वारा आकाशमार्ग से आक्रमण करेगा.

शाल्व ने सौभ नामक विमान पर बैठ सेना के साथ द्वारका पर आक्रमण कर दिया. शाल्व का सेनापति विदूरक और मंत्री द्युम्न, दंतवक्र इत्यादि उसके साथ थे. हथियारों से लैस बड़ी लंबी फौज भी. द्वारका पहली बार ऐसा दृश्य डेख रही थी.

श्रीकृष्ण उन दिनों पांडवों के पास युद्धिष्ठिर से मिलने इन्द्रप्रस्थ गये हुए थे. द्वारका की जनता घबरा रही थी. श्रीकृष्ण को इंद्रपस्थ में ही यह भान हुआ कि कुछ गड़बड़ है. बहुत से अपशकुन दिखते हैं, उन्होंने द्वारका लौटने का मन बना लिया.

शाल्व की सेना ने घेरा डाल दिया और शाल्व ने द्वारका पर आकाशी हमला बोला. बहुत बड़ा विमान मंडराने लगा, कई बार वह केवल ध्वनि करता दिखाई नहीं देता था. शाल्व आकाश से अस्त्र-शस्त्र बरसाने लगा. तेज हवा चलने लगी.

ऊपर से बड़ी-बड़ी चट्टाने गिरने लगीं. द्वारिका के लोग घबरा गए. भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने देखा कि हमारी प्रजा को बड़ा कष्ट हो रहा है. रथ पर सवार हो कर उन्होंने सबको ढांढस बंधाया. युद्ध का ऐलान कर दिया.

उद्धव, चारुदेष्ण तथा सात्यकि साम्ब, भाइयों के साथ अक्रूर, कृतवर्मा, भानुविन्द, गद, शुक, सारण आदि बहुत से वीर निकले उनके साथ हो लिये. ये सबके सब महारथी थे. शाल्व के सैनिकों और यदुवंशियों में भयंकर युद्ध होने लगा.

प्रद्युम्न शाल्व से जमकर लड़ते रहे. कृष्ण भी इंद्रप्रस्थ से चल दिये इस बीच शाल्व को प्रद्युम्न ने घायल कर दिया परंतु शाल्व के मंत्री द्युमान ने अपनी गदा से चोट से प्रद्युम्न की छाती फाड़ डाली. वह बेहोश हो रथ पर ही गिर गये. .

दारुकपुत्र उनका सारथी था. प्रद्युम्न को मूर्छित देखकर उसने चतुराई दिखाई और वह उन्हें युद्ध से हटा ले गया. कुछ देर बाद प्रद्युम्न जी की मूर्च्छा टूटी.

तब उन्होंने सारथी से कहा-तूने यह बहुत बुरा किया. मैं ताऊ बलराम जी और पिता श्रीकृष्ण से क्या कहूंगा? लोग यही कहेंगे, मैं युद्ध से भाग गया? तुमने मुझे रणभूमि से भगाकर घोर अपराध किया है.

प्रद्युम्न के सारथी ने कहा- मैंने सारथी का धर्म निभाया है. शत्रु की गदा प्रहार से आप बेहोश हो गए थे. प्राण संकट में थे इसी से मुझे ऐसा करना पड़ा. प्रद्युम्न फिर युद्ध में लौटे.

शाल्व मायावी प्रयोगों में चतुर था. प्रद्युम्न महान योद्धा थे. दोनों घायल होकर भी युद्ध में लगे रहे. प्रद्युम्न शाल्व पर प्राणघातक बाण छोड़ने वाले ही थे कि तभी एक ऐसी आकाशवाणी हुई कि उन्होंने अपना हाथ रोक लिया.

देवताओं के भेजे हुए वायुदेव ने आकावाणी के जरिये केवल प्रद्युम्न के कानों को संदेश दिया कि शाल्व की मृत्यु श्रीकृष्ण के हाथों होनी निश्चित है, अत: वह अपना बाण न छोड़े.

प्रद्युम्न ने अपने बाण समेट लिये. घायल शाल्व विमान में अपने नगर की ओर भाग गया. श्रीकृष्ण द्वारका पहुंचे. उन्होंने नगर और लोगों की सुरक्षा का भार बलराम पर सौंपा तथा अपने रथ से भागे हुए शाल्व का पीछा उसकी नगरी तक किया.

सब तरफ हल्ला मच गया कि द्वारकाधीश श्रीकृष्ण आ गये. निस्संदेह यदुवंशियों तथा शाल्व की सेना के लोगों ने युद्धभूमि में प्रवेश करते ही भगवान् को पहचान लिया. दोनों के बीच घोर युद्ध होने लगा.

इसी बीच एक आदमी ने भगवान् के पास पहुंच कर उनको सिर झुकाकर प्रणाम किया और रोता हुआ बोला- मुझे आपकी माता देवकीजी ने भेजा है और कहा है कि आपके पिता को शाल्व बांध कर ले गया है.

युद्ध में श्रीकृष्ण के सामने टिकते न देख शाल्व ने छल का सहारा लिया. अपनी माया से एक आदमी तैयार किया. उसकी आकृति श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव जैसी थी. उसे देख भगवान भी मानव जैसा व्यवहार करने लगे.

शाल्व ने कहा- कृष्ण, तुम्हारे पिता मेरे कब्जे में है. अब मैं तुम्हारे सामने इन्हें मारूंगा. फिर उसने उस माया मानव को मार डाला. भगवान ने सोचा, भले ही उसके पास दिव्य विमान है पर शाल्व का बल-पौरुष तो बलराम से बहुत कम है.

इसने बलराम को कैसे जीत लिया. पिताजी तो उनकी सुरक्षा में थे. भगवान श्री कृष्ण इस मायावी रहस्य को समझ गए. उन्होंने बाणों से शाल्व को घायल कर दिया.

गदा के प्रहार से शाल्व के विमान को तोड़ कर असंतुलित कर दिया. गदा के प्रहार से शाल्व का टूटा हुआ विमान समुद्र में गिर पड़ा. गिरते विमान से शाल्व धरती पर कूद कर गदा घुमाते हुए बड़े वेग से श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा.

भगवान ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काटकर उसको सभी कष्टों से मुक्ति दे दी. शिशुपाल की तरह उसका भी उद्धार भगवान के हाथों हो गया. बोलिए श्रीवृंदावन बिहारीलाल की जय.

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संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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