बालकांड

कामदेव ने निष्काम परमात्मा भगवान भोलेनाथ की समाधि भंग करने के लिए अपने पांच अमोघ बाण चलाए. काम का यह अस्त्र ऐसा अचूक है कि जब वह इसे सिर्फ धारण करके निकला तो संसार की सारी रीति-गति बदल गई थी.

बड़े-बड़े तपस्वी और इंद्रियों को जीत लेने वाले ऋषि-मुनियों में प्रेम के कोमल भाव फूटने लगे और भोग की इच्छा होने लगी. संसार को इस प्रकार विचलित देख कामदेव को गर्व होने लगा.

गर्व से भरे काम ने आम वृक्ष पर चढ़कर शिवजी पर बाण चलाए. क्रोधित महादेव ने आंखें खोलीं तो कामदेव भस्म हो गए हैं. देवता भयभीत हैं. संसार से काम समाप्त हो चुका है. योगियों को तो सुख हुआ है किंतु संसार की गति ठहर जाएगी इस बात से ब्रह्मा चिंतित हैं.

छंद :
जोगी अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई॥
अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही॥

योगी तो निष्कंटक हो गए लेकिन कामदेव की पत्नी रति अपने पति की यह दशा सुनते ही मूर्च्छित हो गई. रोती-बिलखती और करुणा से भरे स्वर में प्रलाप करती हुई वह शिवजी के पास गईं.

रति शिवजी के सम्मुख दीनता भरे वचनों से विनती कर रही हैं. वह शिवजी के सम्मुख हाथ जोड़े अनेकों प्रकार से विनती करके अपनी व्यथा सुना रही हैं, स्वामी विहीन होने की पीड़ा कह रही हैं.

शिवजी को स्वयं एक बार ऐसी पीड़ा हुई थी. शीघ्र प्रसन्न होने वाले कृपालु भगवान भोलेनाथ अबला असहाय स्त्री की व्यथा सुनकर उसको सान्त्वना देने वाले वचन बोले.

दोहा :
अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥87॥

हे रति! तेरे स्वामी की शरीर भस्म हो चुका है. अब से तेरे स्वामी का नाम अनंग होगा. वह बिना ही शरीर के ही सबमें वास कर सकेगा. सबमें समा सकेगा. सबमें प्रभाव बना सकेगा. अब तुम्हारा अपने पति से पुनर्मिलन की युक्ति बताता हूं.

चौपाई :
जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥1॥

जब पृथ्वी को प्रताड़ित करने वाले दुष्टों के संहार के लिए यदुवंश में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न होगा. मेरा यह वचन अन्यथा नहीं होगा. तुम्हारा तब अपने स्वामी से पुनर्मिलन होगा.

रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी॥
देवन्ह समाचार सब पाए। ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए॥2॥

रति शिवजी के वचन सुनकर संतुष्ट हो गई हैं. वह भोलेनाथ को प्रणामकर वहां से चली जाती हैं. शिवजी समाधि से उठ चुके हैं. ब्रह्मादि देवताओं ने यह सब समाचार सुना है तो वे वैकुण्ठ लोक को चले.

सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥
पृथक-पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा॥3॥

बैकुंठ लोक से श्रीविष्णुजी के साथ ब्रह्मा आदि समस्त देवता शिवजी के धाम पहुंचे. सबने शिवजी की अलग-अलग स्तुति की. तब शशिभूषण शिवजी प्रसन्न हो गए हैं.

बोले कृपासिंधु बृषकेतू। कहहु अमर आए केहि हेतू॥
कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी। तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी॥4॥

करूणा के सागर शिवजी बोले- हे देवताओं! कहिए, आप किसलिए आए हैं? ब्रह्माजी ने कहा- हे प्रभो! आप अन्तर्यामी हैं. आप हमारे आने का प्रयोजन जानते हैं, तथापि हे स्वामी! भक्तिवश मैं आपसे एक विनती करने आया हूं.

देवताओं ने उनसे पार्वतीजी के साथ विवाह करने को कैसे मनाया यह प्रसंग कल देंखें.

संकलनः राजन प्रकाश

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