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श्रीविष्णु उनकी इस बात से बड़े प्रसन्न हुए. उन्होंने कहा कि मेरी भी कुछ ऐसी अभिलाषा हुई थी. अतः ऐसा ही होगा. यह ब्रह्मक्षेम नाम से सबको सुलभ होगा. राजा भागीरथ तप से गंगा जी को पृथ्वी पर लाएंगे और इसी स्थान पर सूर्यपुत्री यमुना से गंगा का संगम होगा.
जो पुरुष अपने पितृ ईश्वरों का यहां श्राद्ध आदि कर्म करेंगे उनके पितृगण मेरा स्वरूप धारण करेंगे. मकर संक्रांति माघ मास में प्रातःकाल यहां स्नान करने से संपूर्ण पापों का नाश होगा. उनको मैं सालोक्य, सामीप्य और सारूप्य तीनों प्रकार की मुक्ति क्रम से प्रदान करता हूं.
हे मुनिवरों! मैं सर्वज्ञ रूप से बदरी वन में सदैव निवास करता हूं. जो फल और स्थान सौ वर्षों में मिलता है तुमको वहां एक दिन में ही प्राप्त हो जाएगा. इस स्थान के दर्शन करने वाले मनुष्य, जीवन से मुक्त हो जाते हैं.
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