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देवताओं के मन को अपनी करूणामयी वाणी से शांत कराने के बाद भगवान गरूड़ पर सवार हुए और जलंधर का सामना करने युद्ध क्षेत्र की ओर चलने को तैयार हुए. उन्हें युद्ध के लिए तैयार देखकर लक्ष्मीजी को कुछ पीडा हुई.
लक्ष्मीजी बोलीं- हे नाथ मैं भी समुद्र से उत्पन्न हुई हूं, जलंधर भी समुद्र से निकला है. जैसे मैं सागरतनया हूं वैसे ही जलंधर सागरतनय है. इस नाते वह मेरा भाई हुआ. मेरा भाई आपके हाथों युद्ध में मारा जाए तो मैं अपने जनक को क्या उत्तर दूंगी.
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