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प्रभु शरणम् को अपना सबसे उपयोगी धार्मिक एप्प मानने के लिए लाखों लोगों का हृदय से आभार- 100 THOUSAND CLUB में शामिल हुआ प्रभु शरणम्
तकनीक से सहारे सनातन धर्म के ज्ञान के देश-विदेश के हर कोने में प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से प्रभु शरणम् मिशन की शुरुआत की गई थी. इस मोबाइल एप्पस से देश-दुनिया के कई लाख लोग जुड़े और लाभ उठा रहे हैं. सनातन धर्म के गूढ़ रहस्य, हिंदू ग्रथों की महिमा कथाओं और उन कथाओं के पीछे के ज्ञान-विज्ञान से हर हिंदू को परिचित कराने के लिए प्रभु शरणम् मिशन कृतसंकल्प है. देव डराते नहीं. धर्म डरने की चीज नहीं हृदय से ग्रहण करने के लिए है. इस पर कभी आपको कोई डराने वाले, अफवाह फैलाने वाले, भ्रमित करने वाले कोई पोस्ट नहीं मिलेगी. तभी तो यह लाखों लोगों की पसंद है. आप इसे स्वयं परखकर देखें. नीचे लिंक है, क्लिक कर डाउनलोड करें- प्रभु शरणम्. आइए साथ-साथ चलें; प्रभु शरणम्!

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इसके साथ-साथ प्रभु शरणम् के फेसबुक पर भी ज्ञानवर्धक धार्मिक पोस्ट का आपको अथाह संसार मिलेगा. जो ज्ञानवर्धक पोस्ट एप्प पर आती है उससे अलग परंतु विशुद्ध रूप से धार्मिक पोस्ट प्रभु शरणम् के फेसबुक पर आती है. प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े. लिंक-
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सबसे पहले दो बातें बता दूं जिसके आधार पर आप निर्णय कर सकें कि यह पोस्ट पढ़ना है या नहींं-

1. आपने भूल से भी किसी को डराने वाले मैसेज भेजे हैं या आपको कोई मैसेज मिला है तो इसे जरूर पढ़ें,
2. आप सनातन धर्म में हो रहे ह्रास से चिंतित हैं तो इसे जरूर पढ़ें. यदि यह सोचकर जी रहे हैं कि अब क्या किया जाए कलयुग है तो फिर आपके लिए यह पोस्ट नहीं है.

पढ़ना इसलिए जरूरी है क्योंकि हर घर में हमारे-आपके परिवार में कोई न कोई जरूर है ऐसा जो इस साजिश का शिकार हो गया है. जो अंजाने में धर्मविरूद्ध कार्य कर रहा है.

यदि पोस्ट पढ़ने का निर्णय किया है तो इसे गहराई से और आराम-आराम से पढ़ना होगा क्योंकि इसे पढ़ने के बाद आपको भटके हुए सनातनियों को जो अपनी मूर्खता और भय में सनातन को हानि पहुंचा रहे हैं उन्हें समझाना भी होगा.

धार्मिक होने का मतलब सिर्फ पूजा-पाठ करना नहीं होता, अधर्म को रोकना भी जरूरी होता है. गीता का यही सार है.

प्रश्न है कि हम ईश्वर से डरते क्यों हैं? ईश्वर डराने वाली शक्ति है ही नहीं. डराने वाली शक्ति तो आसुरी शक्ति है. इस डर के बीच में क्यों जी रहे हैं हम.

सोशल मीडिया आजकल ऐसे पोस्ट से भरा पड़ा है- इस दिन किया ये काम तो हो जाएगा नुकसान. इस दिन कर लो ये काम तो होगी मुश्किल आसान. आज ये मत करना, कल वो मत करना. आदि, आदि…

एक इंसान कितनी चीजें कर सकता है और कितनी चीजें नहीं कर सकता! क्या उसके पास किस्मत बदलने वाले इन छद्म वेशियों के तुक्के,टोटके मानने के अलावा कोई काम-धाम नहीं बचा?

क्या संभव है ऐसा कि आप सारे टोटके पूरे कर सकें. इसके दो बड़े नुकसान हैं-

पहला तो आप धीरे-धीरे करके एक मानसिक बीमारी के फेर में फंसते जाएंगे जहां आपको हर चीज से डर लगेगा और उस डर का निदान टोटकों में खोजते फिरेंगे. यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है. बढ़ती-बढ़ती यही पशुबलि और मानव बलि जैसे अपराध तक पहुंचा देती है.

दूसरी, यदि आप इन टोटकों में फंस गए तो आपका सारा समय तो इसी में निकल जाएगा. फिर घर-परिवार आपका शत्रु हो जाएगा क्योंकि आपके पास उनके लिए समय ही नहीं होगा.

गहरी साजिश हो रही है जिसे हिंदू समझ ही नहीं रहे. पहले तो उनमें डर का माहौल बनाया जा रहा है फिर उस डर का कारोबार हो रहा है.

क्या आपने स्वयं यह महसूस नहीं किया?

ऐसा कोई दिन नहीं होता जब आपको व्हॉट्सएप्प पर पोस्ट न मिलते हों जिसमें लिखा होता है- यदि यह पोस्ट भेजेंगे तो यह काम बन जाएगा और यदि पोस्ट नहीं भेजा तो तुम्हारा अनिष्ट हो जाएगा.

कभी आता होगा कि यह सीधा बालाजी से आया है, यह सीधा शिरडी से आया है, फलां गांव में हनुमानजी आए. किसी ने मूर्ति बनवा दी तो उसका काम बन गया, जिसने नकार दिया उसका नाश हो गया. यह पोस्ट शेयर नहीं किया तो सात दिन में सब नाश हो जाएगा.

आप भी ऐसे मैसेज से परेशान होते होंगे, संभव है आपमें से कुछ लोग किसी अनिष्ट की आशंका में आगे भेज भी देते हों.

आपको अंदाजा है अंजाने में आपने जीवहत्या जैसा पाप कर दिया?

ईश्वर की शक्तियों को एक मैसेज में कोई समेटकर सिद्ध कर लेगा और उसके आधार पर डर बना देगा. जो इतना डरता है वास्तव में वह भगवान का उपहास कर रहा है. अंजाने में वह कितना बड़ा अपराध कर रहा है, उसे इसका आभास ही नहीं. इस पाप की मुक्ति के लिए तो कोई व्रत भी नहीं बताया गया है.

ग्रंथों के आधार पर समझते हैं- कैसे और कितना बड़ा पाप हुआ है अंजाने में!

शिवपुराण में इस विषय में चर्चा आती है. भगवान भोलेनाथ किसी पर जल्दी कुपित नहीं होते और कुपित हो जाएं तो भस्म ही कर देते हैं जैसे कामदेव को किया था.

तो शिवजी किस पर कुपित होते हैं? इस पर लंबा विवरण है. यहां मैं उसमें से वह बात दे रहा हूं जिसका इस विषय से संदर्भ है-

महादेव उस पर कुपित होते हैं जो मिथ्याचार करता है, जो किसी को शिवभक्ति से किसी को रोकता है, जो शिव की निंदा करता या सुनता है जो शिव की शरण में आए भक्त को भय दिखाता है.

इसमें से शिव के शरणागत को भय दिखाने वाला प्रसंग विशेष रूप से देखने योग्य है. भद्रायु ने शिवजी की शरण ली थी. वह शिवजी का ध्यान कर रहे थे परंतु उनकी आयु पूरी हो चुकी थी. काल अपना कार्य करने आए और भद्रायु को भयभीत करना शुरू कर दिया.

काल को तो अपना कर्तव्य करना था इसलिए तरह-तरह से डराने लगे ताकि भद्रायु कुछ पल के लिए ही थोड़े से बेचैन हों और शिवजी की भक्ति से ध्यान हटे तो इसके प्राण हरने का अवसर मिले. पर भद्रायु काल के प्रयासों से विचलित ही न हुए.

काल ने और डराना शुरू किया तो भोलेनाथ स्वयं प्रकट हुए और काल को ही भस्म कर दिया. त्राहि-त्राहि मच गई.

देवों ने कहा- प्रभु आपका कोप उचित है किंतु काल यदि न होगा तो सृष्टि की व्यवस्था बिगड़ जाएगी. महाकाल के रूप में देवों ने तरह-तरह से शिवजी की स्तुति की. तब शिवजी ने काल को पुनः जीवन दिया.

शिवजी को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने कहा- हे महाकाल आज से जो भी किसी को आपकी भक्ति से विचलित करने का प्रयास करेगा, आपके भक्त के मन में भय उत्पन्न करेगा, वह आपके साथ-साथ हम सभी के कोप का भी अधिकारी होगा. उसकी कोई व्रत-स्तुति स्वीकार नहीं होगी.

ऐसा ही वर्णन श्रीमद्भागवत में भी है. जो भी सदाचारी व्यक्ति जीवों को धर्म का उपदेश करता है, उनके विचारों को शुद्ध करके धर्म के संकल्प के साथ जोड़ता है, उन्हें धर्मनिष्ठ बनाता है उसके वश में स्वयं देवराज इंद्र हो जाते हैं.

उसके लिए संसार में कुछ भी अलभ्य नहीं होता अर्थात उसके लिए संसार के सभी ऐश्वर्य सुलभ हो जाते हैं.

जो किसी धर्मनिष्ठ को बल से, दंड से, लोभ में डालकर, अथवा किसी भी अनुचित प्रयोग से धार्मिक प्रसंग या अनुष्ठान के लिए बाधित करता है ऐसे व्यक्ति के सारे अर्जित पुण्यों का तत्काल नाश हो जाता है, उसके अनुष्ठान देवगण स्वीकार नहीं करते.

ऐसे मनुष्य का शील, धर्म, सत्य, वृत और बल इन पांचों का नाश हो जाता है. इनके नाश होते ही लक्ष्मी उसका त्याग कर देती हैं.

नारद पुराण की एक कथा मैंने आप पहले सुनाई थी.

एक राजा ने कठोर नियम लगा रखा था कि उसके राज्य के प्रत्येक नागरिक यहां तक कि मवेशियों को भी एकादशी का व्रत करना होगा. बड़ा कठोर नियम था. किसी को भोजन दिया ही नहीं जाता था. भूल से भी कोई करे तो राज्य से निकाल दिया जाता था.

भगवान ऐसी बलपूर्वक कराई जा रही भक्ति से दुखी थे.

उनकी प्रेरणा से एक भक्त उस राज्य में आया और उसने एकादशी का व्रत तो नहीं ही किया, साथ में भगवान को भी अपने साथ भोजन कराया. राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मैं सबको व्रत के लिए प्रेरित कर रहा हंा फिर भी हरि ने मुझे दर्शन नहीं दिए!

भगवान ने कहा- तुम किसी को प्रेरित नहीं कर रहे थे, बाध्य कर रहे थे. तुम्हारा एक भी व्रत मैंने स्वीकार ही नहीं किया है. जो भक्ति का प्रचार करके व्रत-आदि की उपयोगिता, विधि-विधान समझाकर किसी को इसके लिए उत्साहित करता है मैं बस उसके व्रत ही स्वीकार करता हूं. थोपी गई भक्ति मुझे स्वीकार ही नहीं.

ऐसे अनगिनत प्रसंग और उद्धरण मैं बता सकता हूं. पर विवेकशील व्यक्ति के विवेक को जागृत करने के लिए इतना पर्याप्त है. इससे ज्यादा की आवश्यकता तो मूढ़ के लिए है. क्या अब भी आपको नहीं लगता कि अंजाने में अधर्म हो रहा है.

अब मुद्दे की बातः

तो आप जिसे यह मैसेज भेज रहे हैं कि यह नहीं किया तो वह हो जाएगा इस तरह आप उसे भगवान का नाम लेने और उसे आगे भेजने के लिए विवश कर रहे हैं. आपकी कोई पूजा तो स्वीकार नहीं ही हुई आपने जो भी अब तक पुण्य संचित किए हों शायद वह भी चले गए हों. इसलिए तत्काल इसे रोकिए.

आपने अंजाने में ही जो कार्य किए हैं उससे आपका शील, धर्म, सत्य, वृत और बल इन पांचों का नाश हो जाता है. इनके नाश होते ही लक्ष्मी उसका त्याग कर देती हैं.

अंजाने में हुए अपराध के लिए ईश्वर से तत्काल क्षमा प्रार्थना करिए और संकल्प लीजिए कि आगे से ऐसा नहीं करेंगे. यदि आप फिर भी ऐसा करते हैं तो फिर आप जानें आपके कर्म जानें.

जो भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ईशनिंदा को सुनता है, उसे प्रचारित करता है वह तत्काल ईश्वर की कृपा से वंचित हो जाता है. धर्म के विरूद्ध आचरण को भी ईशनिंदा माना जाता है. ईशनिंदकों से तुरंत सभी संबंध विच्छेद कर लेने चाहिए.

इस प्रकार ऐसे मैसेज ईशनिंदा की श्रेणी के ही हुए. तो यदि आपने नहीं भेजा लेकिन आपके पास लोग ऐसे मैसेज भेज रहे हैं उनके साथ तत्काल अपने संबंध तोड़ें अन्यथा यह भी अधर्म है.

उन्हें जो ऊपर बात कही है उसे बताकर समझाने का प्रयास करें या ऐसे लोगों को ब्लॉक कर सकते हैं ताकि वे दोबारा ऐसा न कर पाएं.

संसार के बहुत से धर्मों में बलात् यानी तलवार के बल प्रयोग से धर्म में खींचकर लाने की बात कही गई है परंतु सनातन में ऐसा कदापि नहीं है. एक भी प्रसंग आपको कहीं भी नहीं मिलेगा जहां बलप्रयोग से धर्माचरण के लिए विवश किया गया हो.

इसीलिए सनातन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि यह बल से नहीं सौहार्द से आदर्श जीवन की विधि बताता है.

क्या आपको अब आभास हुआ कि जो हो रहा है वह उचित नहीं हो रहा.

इससे भी गंभीर एक प्रश्न है- क्या आपको यह महसूस हो रहा है कि सनातनियों में लगातार ह्रास होता जा रहा है. मर्यादाएं धूमिल हो रही हैं?
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