माघ महीने के कृष्णपक्ष की गणेश चतुर्थी को सभी चतुर्थियों में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है. इसे तिल चौठ भी कहा जाता है. कल तिल चौठ मनेगा.

यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और बुद्धि-विवेक के लिए करती है.

जिनकी संतान नहीं है या जो अपने संतान के करियर को लेकर बहुत चिंतित हैं, उन्हें तिल चौठ का व्रत करना चाहिए.

बुधवार गणेशजी का दिन है इसलिए आज हम आपको गणेश चतुर्थी की व्रत कथा सुना रहे हैं.

कल गणेशजी की अन्य कथाएं और चौठ पूजा की विधि बताएंगे.

गणेश संकष्ट चतुर्थी व्रत की एक प्रचलित कथाः

प्राचीन समय में एक नगर में एक कुम्हार राज्य के बर्तन बनाने का कार्य करता था. जिसमें मिट्टी के बर्तन पकाए जाते हैं उसे आँवा कहते हैं.

आँवा लगाने के एक वर्ष के बाद बर्तन पककर तैयार होते थे. एक बार उस कुम्हार ने आँवा लगाया परन्तु बर्तन पके ही नहीं. कुम्हार परेशान होकर राजा के पास गया.

राजा ने आँवा ना पकने का कारण राजपुरोहित से पूछा. राजपुरोहित ने कहा कि आँवे में बर्तन तभी पकेगा जब एक बच्चे की बलि दी जाए.

राजा ने आज्ञा दी कि हर साल एक घर से एक बच्चे की बलि दी जाएगी.

इस प्रकार आँवा पकाने के लिए हर साल आंवे में एक बच्चे को बिठाकर आँवा लगाने की परंपरा शुरू हो गई.

कुछ वर्षों बाद राज्य में रहने वाली एक बुढि़या के बेटे की बलि की बारी आई. बुढि़या का उसके बेटे के अलावा कोई सहारा नहीं था.

बुढि़या को अपने बेटे के जाने का बहुत दु:ख था. वह सोचने लगी कि मेरा तो एक ही बेटा है और वह भी मुझसे जुदा हो जाएगा.

लेकिन राजा की आज्ञा थी तो बलि के लिए उसे बेटा देना ही था. उसने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर बेटे को बलि के लिए भेजा.

बुढि़या ने उस दिन संकष्टि चतुर्थी का व्रत रखा हुआ था. उसकी गणेशजी पर बड़ी श्रद्धा थी.

उसने बेटे को थोडे़ से तिल देकर कहा कि तुम आँवे में बैठते ही अपने चारो ओर यह तिल छिड़क देना. बाकि भगवान गणेश पर छोड़ दो वह तुम्हारी रक्षा करेंगें.

उस दिन वह भगवान गणेश की पूजा करती रही और रो-रो कर यही अपने बच्चे के प्राण रक्षा की याचना करती रही.

उसके बेटे ने अपनी माँ के दिए तिलों को आँवे में बैठने के बाद अपने चारों ओर बिखेर दिया और भगवान गणेश का ध्यान करने लगा.

परंपरा के मुताबिक बर्तनों के साथ उस लड़के को रखकर आँवे में आग सुलगा दी गई.

मिट्टी के बर्तनों को पकने में एक वर्ष का समय लगता था परन्तु इस बार आँवा एक ही दिन में ठंढ़ा हो गया और बर्तन पक गए.

कुम्हार को यह देखकर बहुत हैरानी हुई. उसने जकर राजा को बता बताई. राजा मंत्रियों और राजपुरोहित संग आँवे के पास पहुंचा.

आँवा हटाया गया. सभी यह देखकर हैरान रह गए कि बुढि़या का बेटा जीवित बैठा है और गणेश जी का ध्यान कर रहा है.

उसके साथ वे बालक भी जीवित थे जिनकी पहले आँवे में बिठाकर बलि दी गई थी.

राजा ने बुढि़या के बेटे से पूछा कि आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ और सभी बच्चे जीवित कैसे हो गए.

उसने अपनी माँ द्वारा रखे गये उपवास तथा गणेशजी की महिमा औऱ तिल रखने की सारी बात बताई.

सारी बातें सुनकर राजा ने बुढि़या तथा उसके बेटे को बहुत से उपहार और इनाम दिए.

जिन लोगों के बच्चे जीवित थे उन सबने बुढ़िया से गणेश पूजन की विधि जानकर राजा के साथ गणेशजी की पूजा की.

राजा ने घोषणा की, अपने परिवार और राज्य के कल्याण के लिए सारी प्रजा माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश संकष्टि चतुर्थी का व्रत करे.

इसके बाद से उस राज्य में तिल चौठ की पूजा होने लगी और गणेशजी सबके संकट हरने लगे.

परिवार की बाधाएं दूर करने और संतान के कल्याण के लिए भगवान गणेश की पूजा की परंपरा चली.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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