आज मैं आपको सामवेद की एक प्रेरक कथा सुनाता हूं. आपके अनुरोधों को देखते हुए जल्द ही शिवजी की कथाओं की सीरिज आरंभ करने वाला हूं.

देवताओं और असुरों में संघर्ष कोई नई बात नहीं थी. दोनों एक दूसरे का अस्तित्व पसंद नहीं करते थे किंतु विधाता ने विधान दिया था कि संतुलन बनाने के लिए आग और पानी दोनों का अस्तित्व साथ रहेगा.

सो दोनों आग और पानी की तरह एक दूसरे के प्रति परम द्वेष के भाव से रहते थे. एक बार इस बात पर संघर्ष आरंभ हुआ कि देवों और असुरों में से ज्यादा बुद्धिमान कौन है. बात बढ़ती चली गई और ब्रह्माजी के पास पंचायत लगी.

युद्ध की नौबत आने लगी. असुरों का कहना था कि उन्होंने देवताओं को अक्सर परास्त किया है लेकिन वे मनुष्यों, यक्ष, गंधर्वों आदि की शक्ति के साथ आते हैं तभी अपना अधिकार प्राप्त कर पाते हैं.

असुरों का दावा था कि वीरता और कूटनीति में देवता उनका मुकाबला नहीं कर सकते इसलिए वे श्रेष्ठ हैं. देवों की ओर से देवराज इंद्र ने भी अपने पक्ष में तर्क देना शुरू किया.

उनका कहना था कि उनके पास आध्यात्मिक शक्ति और तर्क शक्ति है. वे असुरों को अपने कौशल से भगा भी देते हैं. इसलिए बल में वे असुरों के बराबर और ज्ञान में तो बहुत आगे हैं. इसलिए देवता श्रेष्ठ हैं.

ब्रह्मा ने सोचा कि इस विवाद का रास्ता निकालने के लिए विष्णुजी की ओर बढा दिया जाए. सभी को साथ लेकर ब्रह्माजी श्रीहरि के पास पहुंचे और सारा हाल कह सुनाया.

श्रीहरि ने कहा- बल में दोनों की बराबरी है, बस बुद्धि में अंतर का निर्णय करना होगा. बुद्धि का निर्णय तो तर्क के आधार पर ही हो सकता है. जो इसमें श्रेष्ठ रहा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा.

यदि मैंने तर्क के आधार पर कोई निर्णय दिया तो पक्षपात का आरोप लग सकता है क्योंकि मैं भी देवताओं की श्रेणी में ही आता हूं. इसलिए निर्णय एक साधारण सी परीक्षा से होना चाहिए.

सभी तैयार हो गए. देवताओं और असुरों की सहमति से एक निर्णायक मंडल बना. श्रीहरि प्रतियोगिता में शामिल न होकर निर्णायक मंडल में रहे ताकि यह आरोप न लगे कि उन्होंने देवों को युक्ति बता दी.

एक विशाल परात में लड्डू रखे गए. पहले असुरों को बुलाया गया. उनके हाथों में इतना बड़ा चम्मच बांघा गया कि कोहनी मुड़ नहीं सकती थी. एक घंटे में लड्डुओं को खाना था.

असुरों ने आरंभ किया. हथेली मुड़ सकती नहीं थी इसलिए लड्डु जमीन पर गिरे लगने. जिनके मुख बहुत बड़े थे वे तो लड्डू फिर भी खा लेते थे लेकिन ज्यादातर ने उसे बर्बाद ही किया.

समय समाप्त होने पर देवताओं की बारी आई. उन्होंने दिमाग लगाया. एक देवता चम्मच से लड्डू उठाता और स्वयं खाने की बजाय सामने वाले के मुख में डाल देता. इससे कोहनी मोडने की समस्या खत्म हो गई.

घंटे भर से पहले सारे लड्डू समाप्त हो गए. देवों को विजेता घोषित किया गया. श्रीहरि ने कहा- देवों और असुरों में एक बड़ा फर्क है कि वे अपने बारे में सोचने से पहले दूसरे के बारे में सोचते हैं.

जबकि असुरों का ध्यान सबसे ज्यादा आत्मक्रेंदित होता है. स्वार्थी प्राणियों की बुद्धि छोटी हो जाती है इस कारण उसका बल धरा रह जाता है क्योंकि लोभ उन्हें संगठित होने में बाधा करता है. (सामवेद की कथा)

मित्रों, कलियुग में देवता और असुर दोनों का हमारे शरीर में वास है. जब आपकी बुरी भावनाएं जाग्रत हो रही हों तो समझिए आसुरी शक्तियां प्रभावी हो रही हैं. कुछ अनिष्ट होगा क्योंकि विवेक आपका त्याग करने वाला है.

 

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