पिछली कथा में आपने पढ़ा- शिवजी ने दसानन वध में सहायता करने और श्रीराम की सशरीर सेवा के लिए हनुमान अवतार लेने का निर्णय किया. जैसे आज चंद्रग्रहण हैं. राहु ग्रसने को आतुर है, वैसे ही राहु ने एकबार सूर्यदेव को ग्रसने की कोशिश की थी और पवनसुत ने उसे खूब मजा चखाय़ा था.

शिवजी ने अपने एकादश रूप को स्वर्ग की अभिशप्त अप्सरा पुंचिकस्थला जो वानर रूप में अंजना बन गई थीं, उसके गर्भ से जन्म लेने की युक्ति निकाली.

अंजना और केसरी में बड़ा प्रेम था लेकिन उनके कोई संतान न थी. नारदजी ने उन्हें बताया था कि उनके घर में दिव्य पुत्र का जन्म होने वाला है.

शिवजी को अंजना के घर में अवतार लेना था. उन्होंने पवनदेव को बुलाया और अपना दिव्य पुंज देकर उन्हें आदेश दिया कि इस पुंज को अंजना के गर्भ में स्थापित कर दें.

एक दिन अंजना मनुष्य रूप में में विचरण कर रही थीं उस समय तेज हवा के झोंके से उन्हें यह महसूस हुआ कि कोई उन्हें स्पर्श कर रहा है.

वह बेचैन हो गईं. उसी समय पवनदेव ने शिवजी के दिव्य पुंज को कान के रास्ते अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया. व्याकुल अंजना को सांत्वना देते हुए पवनदेव ने आकाशवाणी की.

पवनदेव ने कहा, ‘देवी! मैंने बिना आपका पतिव्रत भंग किए आपके गर्भ में एक ऐसा विलक्षण तेज स्थापित कर दिया है जो पुत्र रूप में जन्म लेने के बाद अतुलित बलशाली और विलक्षण बुद्धि वाला होगा. मैं उसकी रक्षा करूंगा और वह श्रीराम का परमभक्त होगा’

शिवजी द्वारा दायित्व पूरा करने के बाद पवनदेव कैलाश पहुंचे. शिवजी ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा. पवनदेव ने स्वयं को अंजना के पुत्र का पिता कहलाने का सौभाग्य मांगा. हनुमानजी को शंकर सुवन केसरीनंदन, अंजनीपुत्र और पवनसुत कहलाते हैं.

चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार को रामनवमी के तुरंत बाद अंजना के गर्भ से भगवान शिव वानर रूप में अवतरित हुए. शिवजी का अंश होने के कारण अति तेजस्वी होना स्वाभाविक था. पवनदेव ने हनुमानजी को उड़ने की शक्ति प्रदान की थी.

एक दिन अंजना हनुमानजी को अकेला छोड़कर कहीं गईं थीं. हनुमानजी को बड़ी भूख लगी. उन्होंने इधर-उधर खाने की चीज तलाशी लेकिन कुछ नहीं मिला.

अंत में उनकी दृष्टि सूर्य पर पड़ी. प्रातःकाल का समय था. सूर्य की लालिमा देखकर हनुमानजी को लगा कि आसमान में कोई स्वादिष्ट फल लटक रहा है.

वह फल तोड़ने के लिए आकाश में उड़े. देवता, दानव, यक्ष सभी हनुमानजी को सूर्य की ओर बढ़ता देख आश्चर्य में थे. पवनदेव की भी नजर पड़ी.

वह भी अपने पुत्र के पीछे-पीछे भागे. सूर्यदेव के प्रचंड ताप से हनुमान कहीं जल न जाएं इस आशंका में पवनदेव उनपर हिमालय की शीतल वायु छोड़ते रहे.

सूर्यदेव ने देखा कि स्वयं भगवान शिव वानर बालक के रूप में आ रहे हैं तो उन्होंने भी अपनी किरणें शीतल कर दीं. बाल हनुमान सूर्य के रथ पर पहुंच गए और उनके साथ खेलने लगे.

सूर्यदेव भी इससे अभिभूत थे. उस दिन ग्रहण लगना था. समुद्र मंथन के दौरान छल से अमृत पीकर अमर हुए दानव राहु को इंद्रदेव ने महीने में एक बार अमावस्या को सूर्य को ग्रसने का अधिकार दिया था.

उस दिन राहु को सूर्य को ग्रसना था. राहु सूर्य को ग्रसने के लिये आया. राहु ने देखा कि सूर्यदेव के रथ पर एक वानर बालक सवार है. वह हनुमानजी को देखकर आश्चर्य में पड़ा.

राहु ने जैसे ही सूर्य को ग्रसने की कोशिश की, हनुमानजी ने राहु को पकड़ लिया और एक मुक्का जड़ दिया. रोता-चिल्लाता राहु इंद्र के पास भागा इंद्र से पूछा कि क्या आपने सूर्य को ग्रसने का अधिकार किसी और को दे दिया है?

इंद्र ने इंकार किया तो राहु ने सारी बात कह सुनाई. इस बार राहु को सूर्य को ग्रसने में मदद करने के इंद्र भी साथ चले. दोबारा राहु को देखकर हनुमान राहु पर टूट पड़े और उसकी दुर्गति कर दी. राहु ने डरकर इंद्र को रक्षा के लिए पुकारा.

इंद्र को आता देख हनुमान राहु को छोड़कर इंद्र की ओर लपके. इंद्र को शिवजी के अवतार की जानकारी नहीं थी. इंद्र ने घबराकर हनुमानजी पर वज्र से प्रहार कर दिया. इससे हनुमान की हनु (ठुड्ढी) टूट गई और वह घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़े.

पवनदेव ने हनुमान को उठाया और शोक में खुद को एक गुफा में बंद कर लिया. उन्हें इंद्र पर बड़ा क्रोध आया. पवनदेव ने अपनी गति बंद कर दी.

पृथ्वी पर हवा चलनी बंद हो गई. हवा के अभाव में जीवों का दम घुटने लगा. देवता भी घबराए. इंद्र ब्रह्माजी के पास संकट से निकाले की गुहार लगाने पहुंचे.

ब्रह्माजी को सारी बात पता चली और वह सभी देवों के साथ उस गुफा में पहुंचे जहां पवनदेव मूर्च्छित हनुमानजी के साथ शोकग्रस्त बैठे थे. ब्रह्मदेव ने अपना हाथ फेर कर हनुमानजी के ऊपर पड़े वज्र के प्रभाव को समाप्त कर दिया. हनुमानजी उठ बैठे.

पवनदेव खुश हो गए और संसार में फिर से वायु संचार शुरु हुआ. ब्रह्माजी ने सभी देवताओं को हनुमानजी के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि इस अवतार का उद्देश्य क्या है. ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं को कहा कि सभी अपनी शक्तियों के अंश हनुमानजी को दें.

हनुमानजी को सभी देवताओं ने अपने-अपने अंश और तेज देकर अतुलित बलशाली बना दिया.(वायु पुराण की कथा)

किस देवता से हनुमानजी को क्या वरदान मिला और हनुमानजी को क्यों मिला एक शाप जो बाद में उनके लिए एक और वरदान साबित हुआ. हनुमानजी को मिले विभिन्न वरदानों और शाप की कथा, अगले पोस्ट में.

संकलन व संपादन: राजन प्रकाश

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