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सीताजी द्वारा अमरत्व का वरदान
हनुमानजी तब लंका में पहुंचे थे जब माता सीता अपने प्राण देने का विचार कर रही थीं। अचानक हनुमानजी उनके सम्मुख आशा की एक किरण के सदृश
उपस्थित हो गए।
उन्होंने जेसे ही माता को प्रभु श्रीराम की मुद्रिका दिखाई माता हर्षित हो गईँ। उनकी प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। उन्हें हनुमानजी पर बड़ा स्नेह आया।
माता सीती ने हनुमानजी से कहा- आपने मुझे आज वह सुख दिया है जो कोई पुत्र अपनी माता को दे सकता है। इस शत्रुप्रदेश में मेरे सम्मुख मेरे स्वामी का संदेश लेकर आए हे कपिश्रेष्ठ आज से मैं आपको अपना पुत्र स्वीकार करती हूं।
माता के पास जो कुछ भी होता है वह उसके पुत्र के लिए होता है। मैं तुम्हें आशीष देती हूं कि हे पुत्र तुम चिरंजीवी हो जाओ।
इस तरह माता सीता के वरदान से हनुमानजी चिरंजीवी हो गए।
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