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राजा को उस अचूक मंत्र का मर्म समझ में आया. उसे पुरानी बातें याद आ रही था. राजा को अपना बचपन सबसे सुखद लगता था. न चाहते हुए भी वह युवा हो गया और राज्य की जिम्मेदारी संभाली. माता-पिता की सलाह पर राजकाज करता था.

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एक दिन माता-पिता नहीं रहे. वह बहुत दुखी था पर जीवन रूकता तो नहीं. उसके ऊपर प्रजा का दायित्व था. उसने प्रयास किया और धीरे-धीरे खुद राजपाट चलाना सीख गया. जवानी नहीं रुकी; पिता नहीं रुके, पत्नी नहीं रुकी, बेटे नहीं रुके; कुछ नहीं रुका. तो यह बुरा वक्त क्यों रुकेगा. कब तक रूकेगा.

इसके आगे मैं क्यों हार रहा हूं? धैर्य से प्रतीक्षा करता हूं. प्रयत्न भी करता हूं. फिर ईश्वर राह दिखाएगा.
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