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वह स्वयं के अनुमान से नदी के उद्गम स्थान की खोज करते हुए कुर्ग क्षेत्र में पहुंचे. कैलास से कमंडल भर कर लाते और उद्गम स्थान की खोज करते-करते ऋषि थक गए. उन्होंने कमंडल को भूमि पर रखा और विश्राम करने लगे.
ऋषि थकान उतारने के लिए स्थान तलाशने लगे. पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में स्थित सुन्दर ब्रह्माकपाल पर्वत उन्हें दिखाई पड़ा. इस सुंदर पहाड़ के एक कोने में एक छोटा सा जलाशय भी था. अगस्त्य को विश्राम के लिए स्थान उत्तम लगा.
मनोरम स्थल पर विश्राम को बैठे अगस्त्य की झपकी लग गयी. थोड़ी देर में अचानक एक आहट से उनकी तंद्रा भंग हुई तो उन्होंने देखा कि जो कमंडल कैलाश से भरकर लाए थे वह भूमि पर लुढ़क चुका है. जल बह रहा है और पास ही एक कौवा बैठा है.
अगस्त्य तत्काल समझ गये कि यह सब कौवे का किया धरा है. कौवा उड़ते उड़ते आया होगा और जल की अभिलाषा में कमंडल पर बैठा होगा. भूमि समतल न होने से कमंडल असंतुलित हो लुढ़क गया होगा.
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