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देवी ने महादेव का आह्वान किया. वह तत्काल पहुंचे. उन्होंने अंधक को पकड़ लिया और उसे फिर से समझाने की कोशिश की परंतु वह नहीं माना. महादेव ने कहा कि तुम दो नेत्रों से अंधे थे इसलिए मैंने तुम्हारे दो अपराध क्षमा किए हैं.

यह अंतिम चेतावनी है. उन्होंने अंधक को जीवनदान दे दिया. अंधकासुर के बार-बार पराजित होने से असुरों के बीच उसकी अहमियत कम होने लगी. इसलिए उसने प्रचंड संग्राम की तैयारियां शुरू कीं.

चचेरे भाई प्रहलाद ने भी उसे समझाने का प्रयास किया लेकिन वह नहीं माना. अंधकासुर का एक महाबलशाली मित्र और सेनापति था-बाली. अंधक को इस बात का क्रोध था कि इंद्र ने यदि सहायता न की होती तो वह पार्वतीजी का हरण कर लेता.

उसने बाली को देवों का नाश करने भेजा. बाली ने सेना समेत देवलोक पर चढ़ाई की और सभी देवताओं को निगल लिया. महादेव के क्रोध की सारी सीमाएं टूट चुकी थीं.
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