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उन्होंने बाली पर भयानक आघात किया. आघात इतना प्रचंड था कि बाली आकाश में गोल-गोलकर चक्कर खाने लगा और उसके पेट से सभी देवता बाहर निकल आए.
जब देवता सुरक्षित निकल आए तो महादेव ने उसका सेना सहित अंत कर दिया. अंधकासुर इस विनाश के लिए तैयार न था. वह सेना विहीन हो चुका था.
उसने असुरगुरू शुक्राचार्य को कहा कि वह मृत संजीवनी विद्य़ा का प्रयोगकर असुरों को जीवित करें. महादेव शुक्राचार्य के गुरू थे. उन्होंने शुक्र को ज्ञान दिया था.
शुक्र अपने गुरू से शत्रुता करना नहीं चाहते थे पर असुर सेना का समूल नाश होने के कारण वह तैयार हो गए क्योंकि वह दैत्यों के गुरू थे.
शुक्राचार्य शिवजी द्वारा प्रदत्त मृत संजीवनी विद्या के बल पर असुरों को जीवित करने लगे. महादेव को यह खबर हुई तो वह बड़े क्रोधित हुए. शुक्राचार्य को यह विद्या स्वयं महादेव ने विश्व कल्याण के लिए सिखाई थी.
परंतु वह तो शिवद्रोहियों का कल्याण कर रहे हैं. महादेव के क्रोध की कोई सीमा न रही. उन्होंने शुक्राचार्य को ही निगल लिया.
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