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युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा- भगवन कई बार अनजाने में भूलवश भी पापकर्म हो जाते हैं. क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे अंजाने में हुए पापों से तो मुक्ति मिल ही जाए साथ ही साथ कुछ पुण्य लाभ भी हो जाए?

भगवान बोले- महाराज! पाप जान भूझकर हों या अंजाने में, कर्मों का दंड भोगना पड़ता है. लेकिन शकटव्रत एक व्रत ऐसा है जिससे मनुष्य अंजाने में हुए पाप के दंडों से मुक्ति पाकर देवों का कृपापात्र हो जाता है. आपको एक कथा सुनाता हूं.

काफी पहले सिद्ध योगी हुआ जिसने बहुत सारी कठोर सिद्धियां अपने बल पर प्राप्त की. वह था तो गुणी पर उसका रूप बड़ा भयंकर था. उसी भयंकर रूप में पृथ्वी पर घूमा करता था.

लंबे लटके ओंठ, टूटे दांत, पीली पीली आंखें, चपटे कान, फटा मुख, लंबा मोटा पेट, टेढ़े-मेढे पैर, सारे ही अंग कुरूप थे. उसे देख लोग घृणा से मुंह फेर लेते थे.

एक दिन यूंही घूमते उसे एक नगर के पास मुल्जालिक नाम के एक ब्राह्मण ने देखा और पूछा कि आप स्वर्ग से कब आये? आप का स्वर्ग से धरती पर आने का क्या प्रयोजन? ऐसा क्या काम आन पड़ा कि आपको धरती पर उतरना पड गया?

यह बताइए कि क्या अपने देवताओं के चित्त को मोह लेने वाली और जिससे स्वर्ग का श्रृंगार है उस रूपिणी रम्भा को वहां देखा है? आप वापस स्वर्ग जाएं तो अप्सरा रम्भा से कहें कि अवन्तिपुरी का ब्राह्मण तुम्हारा कुशलक्षेम पूछता था.

ब्राह्मण का वचन सुनकर सिद्ध बहुत चकित हुआ. उसने पूछा- हे ब्राह्मण! तुम्हारी बात तो सत्य है कि मैं स्वर्ग से ही आया हूं पर तुमने मुझे कैसे पहचाना?

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1 COMMENT

  1. sharda aue bhakti tatha gyan ko parksit karney wala aap key dwra dali gaey pege ki jitney bhi tarif kiya jay kam hai meri aur say karo shub kamna aap hamesa hamara marg darsan kartey rahe aur hum may bhakti bhao jagatey rahey danybad

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