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ब्राह्मण ने कहा- महाराज! कुरूप पुरुषों के एक-दो अंग विकृत होते हैं पर आपके सभी अंग टेढ़े और विकृत हैं. इस मामले में आप अति विशिष्ट हैं इसी से मैंने अनुमान किया की रूप को इतना गुप्त किए रखने वाले आप कोई स्वर्ग के सिद्ध ही हैं.

ब्राह्मण का वचन सुनते ही सिद्ध वहां से अन्तर्धान हो गया. बहुत दिनों के बाद एक बार वह फिर धरती पर आया और ब्राह्मण के समीप जाकर कहने लगा- ब्राह्मण! हम स्वर्ग में गये और रम्भा से भी मिले.

एक बार जब इंद्र की सभा में जब नृत्य का कार्यक्रम समाप्त हो चुका तो उसके बाद मैं एकांत में रम्भा से मिला. तुम्हारा संदेश उसे सविस्तार सुनाया, परन्तु रम्भा ने यह कहा कि मैं उस ब्राह्मण को नहीं जानती.

मैंने स्मरण का अनुरोध किया तो उसने कहा कि यहां तो उसी का नाम सब जानते हैं जो निर्मल विद्या, पौरुष, दान, तप, यज्ञ अथवा व्रत आदि से युक्त होता है. उसी का नाम स्वर्ग भर में चिरकाल तक स्थिर रहता है.

रम्भा ने ऐसा कहा? यह बात सिद्ध के मुख से सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि अबकी रम्भा मिले तो उससे कहिएगा कि हम वह ब्राह्मण हैं जो शकटव्रत को नियम से करते हैं.

यह सुनते ही सिद्ध फिर अन्तर्धान हो गया और स्वर्ग में जाकर उसने रम्भा से ब्राह्मण का संदेश कहा और फिर उसने उस ब्राह्मण के गुणों का वर्णन किया तब रम्भा प्रसन्न हो गयी.

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1 COMMENT

  1. sharda aue bhakti tatha gyan ko parksit karney wala aap key dwra dali gaey pege ki jitney bhi tarif kiya jay kam hai meri aur say karo shub kamna aap hamesa hamara marg darsan kartey rahe aur hum may bhakti bhao jagatey rahey danybad

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