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यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने पैर को अंगूठे से भूमि को दबाया तो पाताल से जल निकल आया. जल देखकर राधा और गोपियां बोली हम विश्वास कैसे करें कि यह तीर्थ की धाराओं का जल है.

ऐसा सुनकर सभी तीर्थ धाराओं ने अपना परिचय देना शुरू किया. श्रीकृष्ण ने राधाजी और गोपियों को उस कुंड में स्नान करने को कहा तो वे कहने लगीं कि हम इस गोहत्या लिप्त पापकुंड में क्यों स्नान करें. इसमें स्नान से हम भी पापी हो जाएंगे.

तब राधिकाजी ने अपनी सखियों से कहा कि सखियों हमें अपने लिए एक मनोहर कुंड तैयार करना चाहिए. उन्होंने कृष्ण कुंड की पश्चिम दिशा में वृषभासुर के खुर से बने एक गड्ढे को खोदना शुरु किया. गीली मिट्टी को सभी सखियों और राधाजी ने अपने कंगन से खोदकर एक दिव्य सरोवर तैयार कर लिया.

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