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भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन में असुरों का उद्धार कर रहे थे. सभी देवगण प्रभु की लीला का रसपान कर रहे थे. भगवान की लीलाओं को देख ब्रह्माजी मुग्ध थे लेकिन तृप्ति न होती थी. उन्होंने भगवान की लीला की परीक्षा का रस लेने का मन बनाया.
एक दिन श्रीकृष्ण बाल-ग्वालों के साथ गाय चराते-चराते यमुना के बलुआही छोर यानी पुलिन पर पहुंचे. ब्रह्माजी ने अपनी माया से उसे अलौकिक सुंदर बना दिया. ग्वाल-बाल तो उस स्थान को देखकर उमंग से झूमने लगे.
इस रमणीय पुलिन पर भोजन का निर्णय हुआ क्योंकि दिन बहुत चढ़ गया था और सभी भूख से पीडि़त हो रहे थे. बछड़े पानी पीकर समीप ही धीरे-धीरे हरी-हरी घास चरने लगे. सभी बैठकर भोजन करने लगे.
ब्रह्माजी ने अपनी माया से बछड़ों को सुंदर और ज्यादा हरी-हरी घास दिखाई और उन्हें फुसलाकर दूर खींचने लगे. ग्वालबालों का ध्यान उस ओर गया. तो वे बछड़े गायब हो जाने के भय से भयभीत हो गए.
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