अजामिल एक धर्मपरायण गुणी समझदार और विष्णुभक्त था. माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र ने किशोरावास्था तक वेद-शास्त्रों का विधिवत अध्ययन कर लिया.

युवावस्था में प्रवेश करते ही एक दिन उसके साथ ऐसी घटना घटी कि उसका पूरा जीवन परिवर्तित हो गया.

पिता के आदेश पर आजामिल एक दिन पूजा के लिए वन से उत्तम फल और फूल लेकर लौट रहा था. रास्ते में उसे एक बाग में भील के साथ सुंदर युवती दिखी.

दोनों एक दूसरे से प्रेम कर रहे थे. अजामिल ने खुद को उसे देखने से रोका लेकिन दैवयोगवश वह उस युवती का रूप निहारने लगा.

उस स्त्री की नजर भी अजामिल पर पड़ी और वह भी उस पर मोहित हो गई. स्त्री ने अजामिल को पास बुलाया और अपने मन की बात कह दी.

अजामिल तो मोहित था ही, स्त्री से मिले प्रेम निमंत्रण से तो उसका दिमाग और मन पर नियंत्रण ही नहीं रहा. रूपजाल में फंसा अजामिल अपने संस्कार तक भूल गया.

उसने पूजा के लिए रखे फल-फूल वहीं फेंक दिए और युवती के साथ प्रेम में मगन हो गया. फिर उस स्त्री को लेकर वह घर चला आया.

पिता पूजा में विघ्न पड़ने से नाराज तो थे ही, अजामिल को एक आचरणहीन स्त्री के साथ देखकर भड़क उठे और खरी-खोटी सुनाने लगे.

अजामिल ने कहा उसने गंधर्व विवाह कर लिया है. पिता ने उसे धर्म-कर्म का लाख हवाला दिया परंतु नारी रूप पर आसक्त अजामिल को कहां समझ आना था.

क्रोधित पिता इस धृष्टता का दंड देने के लिए उठे लेकिन अजामिल ने उन्हें जमीन पर पटक दिया. फिर उसने पिता को धक्के मारकर घर से निकाल दिया.

लोकलज्जा, कर्म और संस्कार तो भूल ही चुका था, स्त्री की जरूरतें पूरी करने के लिए अजामिल चोरी, डकैती, लूटपाट करता. मदिरापान और जुए की लत पड़ गई थी.

उसे बुरे कर्मों में ही संतुष्टि मिलने लगी. उस स्त्री से अजामिल को नौ पुत्र संताने हुईं. दसवीं बार उसकी पत्नी गर्भवती हुई.

एक दिन कुछ सन्तों का समूह उस ओर से गुजर रहा था. रात्रि अधिक होने पर उन्होंने उसी गांव में रहना उपयुक्त समझा जिसमें अजामिल रहता था.

संतों ने गांव वालों से भोजन और ठहरने का प्रबंध करने को कहा तो गांव वालों ने मजाक बनाते हुए साधुओं को अजामिल के घर का पता बता दिया.

संत अजामिल के घर पहुंच गए. उस समय अजामिल घर पर नहीं था. गांव वालों ने सोचा था कि ये साधु अजामिल के द्वार पर अपमानित होंगे और इधर कभी न आएंगे.

संतों की मण्डली ने अजामिल के द्वार पर जाकर राम नाम का उच्चारण किया और खाने को मांगा. उसकी पत्नी हाथ में कुछ दक्षिणा लेकर बाहर आई.

वह साधुओं से बोली- आप ये सामग्री लेकर यहाँ से शीघ्र निकल जायें. अजामिल आता ही होगा. उसने देख लिया तो आप लोगों को परेशानी हो जाएगी.

साधुओं ने भोजन की सामग्री ली उसके घर के पास एक वृक्ष के नीचे भोजन बनाने लगे. वे समझ गए कि समय के फेर से अजामिल कुसंस्कारी हो गया है.

जाने से पहले सन्त पुन: अजामिल के घर पहुंचे. उन्होंने आवाज़ लगाई तो अजामिल की स्त्री बाहर आई. सन्तों ने कहा- तुम अपनी संतान का नाम नारायण रखना.

अजामिल को दसवीं संतान के रूप में एक पुत्र हुआ. संतों के कहने पर अजामिल की स्त्री ने उसका नाम ‘नारायण’ रख दिया. नारायण सभी का प्रिय था।

अजामिल स्त्री और अपने पुत्र के मोह जाल में जकड़ा रहा. धर्म-कर्म तो कब का त्याग चुका था. कुछ समय बाद उसका अंत समय भी नजदीक आ गया.

भयानक यमदूत उसे लेने आए. भय से व्याकुल अजामिल ने नारायण! नारायण! पुकारा. भगवान का नाम सुनते ही विष्णु के पार्षद तत्काल वहां पहुंचे.

यमदूतों ने जिस रस्सी से अजामिल को बांधा था, पार्षदों ने उसे तोड़ डाला. यमदूतों के पूछने पर पार्षदों ने कहा कि नारायण नाम के प्रभाव से यह श्रीहरि का शरणागत है.

यमदूतों ने कहा कि यदि हमने अपना कार्य पूरा न किया तो धर्मराज का कोप झेलना पड़ेगा. इस व्यक्ति ने जीवनभर बुरे कर्म किए हैं. इसे घोर नर्क में स्थान मिला है.

पार्षदों ने कहा- किंतु जब तुम इसे पकड़ने आए तो यह नारायण नाम का स्मरण कर रहा था. प्रभु के आदेश पर हम प्रभुनाम जपने वालों की सहायता करते हैं.

यमदूतों ने बताया कि यह प्रभुनाम का स्मरण नहीं कर रहा था बल्कि हमारे भय से अपने पुत्र को पुकार रहा था. दोनों पक्षों में बहस चलती रही.

पार्षदों ने कहा- अंत समय में इसने नारायण नाम लिया है इसलिए इसे नरक नहीं ले जा सकते. यमदूत गए और उन्होंने धर्मराज को सारी बात बताई.

धर्मराज ने कहा- श्रीहरि के दूतों के दर्शन के कारण इसे एक वर्ष की जीवन स्वतः ही मिल गया. अब इस एक साल के कर्मों के आधार पर इसकी गति तय होगी.

अजामिल को एक साल मिल गया था. वह धर्मपरायण हो गया. प्रभु नाम का जाप करना और धर्म-कर्म यही उसका काम था. जीवन के शेष दिन उसने सत्संग में बिताए.

एक साल पूरे होने पर यमदूत फिर आए लेकिन इस बार उन्होंने उसे अपमानित करते हुए रस्सी में नहीं बांधा बल्कि सम्मान के साथ विदाकर स्वर्ग ले गए.

श्रीमद भागवत की यह कथा बताती है कि ईश्वर का मार्ग ही मोक्ष का मार्ग है. अंततः ईश्वर के ही पास जाना है. तय करना होगा कि यमदूत हमें रस्सियों में बांधकर घसीटते हुए ले जाएं या सम्मान के साथ प्रभु शरण प्राप्त हो.

संकलन व संपादन: प्रभु शरणम्

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