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तीसरे जन्म में भी मैं स्वयं आया हूं. इस जन्म में मैंने आपको अपना स्वरूप इसलिए दिखाया ताकि आपको मेरे द्वारा मिले वरदान और मेरे पूर्व अवतारों का स्मरण हो जाए. आप लोग मेरे साथ पुत्रभाव ही रखते हुए ब्रह्मनिष्ठ हों तो मोक्ष प्राप्त होगा.

प्रभु ने फिर अपना रूप समेट लिया और बालक रूप में हो गए. उनकी योगमाया के प्रभाव से वसुदेव और देवकी उन्हें ईश्वररूप के स्थान पर पुत्ररूप में देखने लगे.

जो पिता कुछ पल पूर्व संसार में स्वयं को सर्वसमर्थ महसूस कर रहा था अब उसे भय होने लगा कि कहीं कंस उनके पुत्र का वध न करे दे. कंस के बंदी वसुदेव श्रीहरि की रक्षा के लिए चिंतित होने लगे. यही तो प्रभु की माया है.

उधर प्रभु के आदेश पर योगमाया ने नंदबाबा के घर में जन्म लिया. योगमाया के प्रभाव से बंदीगृह के रक्षकों पर मूर्च्छा आ गई. कारागार के दरवाजे स्वयं खुल गए. वसुदेवजी प्रभु की प्रेरणा से उन्हें एक टोकरी में रखकर नंदबाबा के घर की ओर चल पड़े.

योगमाया ने कंस को कैसे आभास करा दिया कि उसकी मृत्यु का कारण अवतार ले चुका है. कंस ने देवकी वसुदेव को कारागर से मुक्त करने के बाद क्या किया. यह कथा आपको अगले भाग में सुनाउंगा.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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