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देवताओं और असुरों ने मंदारपर्वत को मथानी और वासुकि नाग को रस्सी बनाया. मथानी समुद्र की तलहटी में डूब ही न जाए इसलिए भगवान विष्णु कछुआ बन उसके नीचे लगे.
देवताओं ने सांप की पूंछ पकड़ी और दैत्यों ने मुंह अब देवता और असुर मिलकर क्षीर सागर में समुद्र-मंथन करने लगे. वर्षों के मंथन के उपरांत सर्वप्रथम शीतल किरणों वाले अति उज्ज्वल चन्द्रमा प्रकट हुए, फिर देवी लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ.
लक्ष्मी के कृपाकटाक्ष को पाकर सभी देवता और दैत्य परम आनंदित हो गए. भगवती लक्ष्मी ने इनका वरण किया. इंद्र ने राजस-भाव से व्रत किया था, इसलिए उन्होंने त्रिभुवन का राज्य प्राप्त किया.
दैत्यों ने तामस-भाव से व्रत किया था, इसलिए ऐश्वर्य पाकर भी वे ऐश्वर्यहीन हो गए. महाराज! इस प्रकार इस व्रत के प्रभाव से श्रीविहीन सम्पूर्ण जगत फिर से श्रीयुक्त हो गया.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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