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वह शोकाकुल है इसलिएये मनोरंजन के बहुतेरे उपाय भी किए गये. रास रंग के बाद नागराज से ऋतुध्वज से जो मन में हो मांगने को कहा. मनवांछित वस्तु मांगने के कहने पर भी मदालसा के विरह में शोकग्रस्त ऋतुध्वज मौन रहे.

नागराज सब जानते ही थे सो अपने फन से पैदा हुई मदालसा ऋतुध्वज को समर्पित कर दी. ऋतुध्वज ने अत्यंत आभार तथा प्रसन्नता के साथ अश्वतर को प्रणाम किया.
ऋतुध्वज ने अपने घोड़े कुवलय का आवाहन किया.

कुवलय पलक झपकते ही उपस्थित था. अपने दिनों मित्रों का धन्यवाद ज्ञापन करने के उपरांत वह कुवलय पर सवार हो मदालसा सहित अपने माता-पिता के पास पहुँचा.

पिता शत्रुजित की मृत्यु के उपरांत उसका राज्याभिषेक हुआ. मदालसा से उसे चार पुत्र प्राप्त हुए. पहले तीन पुत्रों के नाम क्रमश: विक्रांत, सुबाहु तथा अरिमर्दन रखा गया.

मदालसा प्रत्येक बालक के नामकरण पर हंसती थी. राजा ने कारण पूछा तो वह बोली कि आवश्यक नहीं कि बालक में नाम के अनुरूप ही गुण हों. नाम तो मात्र चिह्न है

आत्मा का नाम भला कैसे रखा जा सकता है. जब चौथे बालक का नाम मदालसा ने ‘अलर्क’ रखा. तो ऋतुध्वज ने कहा इसका क्या अर्थ. मदालसा ने कहा हर नाम उतना ही निरर्थक है जितना ‘अलर्क’.
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