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आपने तीर्थयात्रा पर गए उस व्यक्ति के साथ विश्वासघात किया जिसने आपपर अंधविश्वास किया था.
आपने प्रजा की धरोहर में डाका डालकर राजधर्म भी नहीं निभाया.
जिह्वा के लालच में पड़कर हंस के सौ बच्चे भूनकर खा गए जो आपके पास आश्रय के लिए आए थे. इस तरह आपने उस असहाय का वध किया जिसे आपने आश्रय दिया था. यह बहुत बड़ा पाप है.

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हे राजन! इन घोर पापकर्मों का आपको दंड मिला है. जैसे आपने जिह्वा के लालच में हंस के सौ बच्चे मारे, वैसे ही आपके सौ पुत्र हुए लालच में पड़कर मारे गए. उन सबकी जिह्वा भी आवश्यकता से अधिक उदंड थी.

जिसने आपपर आंख मूंदकर भरोसा किया उस तीर्थयात्री से आपने झूठ बोला और राजधर्म का पालन नहीं किया. कोई आंख मूंदकर विश्वास करे तो उसका विश्वास कभी नहीं तोड़ना चाहिए. इसी विश्वासघात के कारण आप अंधे और राजकाज में विफल व्यक्ति हो गए.

श्रीकृष्ण ने कहा- सबसे बड़ा छल होता है विश्वासघात. आप उसी पाप का फल भोग रहे हैं.

संकलनः राजन प्रकाश

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