दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश पूजा विधि
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दीपावली माता लक्ष्मी को प्रसन्न रखने का विशेष अवसर है. दीपावली की पूजा कैसे करें, किस मुहूर्त में करें, दीपावली को लक्ष्मी पूजन का मंत्र एवं विधि. दीपावली को लक्ष्मी पूजन से जुड़ी सारी जानकारी. इसे पढ़ने के बाद दीपावली पूजा के लिए कुछ और पढ़ने की जरूरत नहीं रह जाएगी.

दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश पूजा विधि

दीपावली पर धन-संपदा के साथ-साथ उस संपदा के विवेकपूर्ण रूप से प्रयोग के लिए श्री लक्ष्मी-गणेश जी का पूजन किया जाता है. माता लक्ष्मी को चंचला कहा जाता है. इसलिए उन्हें प्रसन्न रखने के लिए विशेष उपाय करने होते हैं. इसके लिए सबसे अच्छा अवसर है दीपावली. जैसे आप किसी घर में जाते हैं और वहां आपकी अच्छी आवभगत होती है तो आपका मन प्रसन्न होता है. उसी तरह दीपावली पर यदि महालक्ष्मी की विधिवत आवगभगत करेंगे तो वह आपके घर में वास करने करने लगती हैं.

गणेशजी की पूजा तो हर पूजन से पूर्व करनी जरूरी है.  दीपावली पर महालक्ष्मीजी के साथ-साथ गणेशजी और सरस्वतीजी की पूजा भी की जाती है. वैसे दीपावली विशेष रूप से महालक्ष्मी के पूजन का अवसर है.  इस पोस्ट में हम आपको श्रीमहालक्ष्मी की पूजा की विधि बहुत विस्तार से बताएंगे. गणेशजी की पूजा की विधि थोड़ी छोटी रहेगी. वैसे यदि आप गणेशजी की भी पूजा भी षोडशोपचार विधि से करना चाहते हैं तो अति उत्तम. इससे अच्छी कोई बात ही नहीं हो सकती. लक्ष्मीजी के षोडशोपचार विधि में मंत्र में जहां-जहां लक्ष्मी शब्द आए वहां-वहां गणपति करके कर सकते हैं.

षोडशोपचार मतलब 16 प्रकार से ऐसी सेवा करना कि देवता आपपर प्रसन्न होकर आपके यहां वास करने लग जाएं.  पूरी विधि को आपकी सुविधा के लिए 34 प्रक्रिया में बांट दिया है ताकि आप क्रम न भूलें और कुछ छूट न जाए. 34 सुनकर घबराएं नहीं. पूरी पूजा में 15 मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगता है. आप एक बार पोस्ट पूरा पढ़कर देख लें खुद समझ जाएंगे. इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप स्वयं मां लक्ष्मी की पूजा विधिवत कर सकते हैं. किसी की आवश्यकता नहीं होगी.

 

दीपावली पर इस विशेष पोस्ट में आप जानेंगेः

  • दीपावली 2017 को लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
  • दीपावली पूजा घर में स्वयं कैसे कर सकते हैं.
  • दीपावली को लक्ष्मी पूजन के लिए आवश्यक सामग्री
  • दीपावली को श्रीगणेश पूजन की विधि
  • दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की षोडशोपचार विधि एवं मंत्र 


दीपावली पूजा के लिए आवश्यक सामग्रीः

  • -दीपावली पूजा के लिए महालक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिए.
  • -प्रतिमा की विधिवत पूजा करके अपने घर, दुकान या ऑफिस में स्थापित करना चाहिए. माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए.
  • -वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है.
  • -माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है.
  • -फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं.
  • -सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें.
  • -अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्ध केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है.
  • -प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है.
  • -गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए.

 

दीपावली 2019 को लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्तः

प्रदोष काल

27 अक्टूबर 2019 रविवार को दिल्ली तथा आसपास 17:40 से 20:16 तक प्रदोष काल रहेगा. प्रदोष काल का प्रयोग लक्ष्मी पूजन के लिए शुभ मुहूर्त के रूप में किया जाता है. प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न समय सबसे उतम रहता है. 18:42 से 20:37 के दौरान वृष लग्न रहेगा जो कि स्थिर लग्न है. प्रदोष काल व स्थिर लग्न दोनों रहने से मुहुर्त विशेष शुभ रहेगा.

निशीथ काल

निशिथ काल में स्थानीय प्रदेश समय के अनुसार इस समय में कुछ मिनट का अन्तर हो सकता है. 27 अक्टूबर को 20:16 से 22:52 तक निशिथ काल रहेगा. निशिथ काल में 17:40 से 19:18 तक की शुभ उसके बाद अमृत की चौघडिया रहेगी. व्यापारियों के लिए लक्ष्मी पूजन इस समय अनुकूल रहेगा.

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लक्ष्मी-पूजा की पूरी विधिः स्वयं कर सकते हैं विधिवत पूजा

संकल्प लेंः

पूजन की पूरी तैयारी करके संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें-

ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वत मन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्त अन्तर्गत ब्रह्मवर्तैक देशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते 2070, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) रवि वासरे स्वाति नक्षत्रे आयुष्मान योग चतुष्पाद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।

 

यदि यह पूरा संकल्प नहीं बोल पाते तो संक्षिप्त विधि हैः

हाथ में संकल्प की सामग्री लेकर भगवान का ध्यान करें फिर मन में कहें- हे परमात्मा, हे मेरे आराध्य, मैं(अपना नाम लें), गोत्र(अपना गोत्र कहें) इस स्थान पर (अपने शहर, मोहल्ला, मकान संख्या), कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को अपने और अपने परिवार की सुख-शांति-समृद्धि- आरोग्य-कल्याण की कामना के साथ श्री लक्ष्मी-गणेशजी के पूजन का संकल्प लेता हूं. ज्ञात-अज्ञात विधियों से विहीन होकर भी यथाउपलब्ध सामग्री से, यथासंभव विधि से पूजन कर रहा हूं. जो भी न्यूनता अधिकता हो उसके लिए क्षमा करेंगे और मुझे पूजन की अनुमति दें.

गणपति पूजनः
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है. इसलिए आपको भी सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा करनी चाहिए.  हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें।

मंत्रः-

गजाननं भूतगणादिसेवितं, कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।

गणेश जी का आवाहन:

ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।।

इतना कहकर एक पात्र में हाथ में लिया पुष्प अक्षत छोड़ें।

हाथ में जल लेकर बोलें-
एतानि पाद्य आचमनीयं-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।

(हे श्रीगणेशजी आपके पाद्य के लिए, स्नान के लिए, आचमन और पुनराचमन के लिए जल स्वीकारें)

रक्त चंदन लगाएं:

इदमं रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:

इसी प्रकार गणेशजी को जो भी सामग्री समर्पित करना चाहते हैं उस सामग्री का नाम कहते जाएं. जैसे यदि पुष्प समर्पित करना है तो कहें- इदम् पुष्पं समर्पयामि, ऊँ गं गणपत्यै नमः. वस्त्र के लिए इदं वस्त्रं समर्पयामि, ऊँ गं गणपत्यै नमः

श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं। गणेश जी को वस्त्र पहनाएं। इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।

पूजन के बाद गणेशजी को प्रसाद अर्पित करें:

इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

मिष्ठान्न अर्पित करने के लिए मंत्र:

इदं शर्कराघृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं-

इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:।

इसके बाद मुखशुद्धि के लिए पान सुपारी चढ़ाएं:

इदं ताम्बूल पुगीफलं समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

अब एक फूल हाथ में लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें:

एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:

इसी प्रकार से सरस्वतीजी की पूजा भी कर सकते हैं। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।

कलश पूजनः

दीपावली पूजन में बहुत से लोग कलश पूजन नहीं भी करते हैं. जो लोग कलश पूजन के साथ पूजा करते हैं उनके लिए विधि संक्षिप्त रूप में दी जा रही है.

घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें. कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, कुछ सिक्के रख दें.

कलश के गले में मौली लपेटें.

नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर स्थापित करें.

हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर जल के देवता वरूणदेव का कलश में आह्वान करें.

इस कलश में वरुणदेवता सपरिवार, सायुध, सशक्ति, संपूर्ण रूप से प्रवेश करें. हे वरुण देवता आप यहां विराजें, मैं आपका पूजन करने को लालायित हूं.

जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण देवता की पूजा करें. इसके बाद देवराज इन्द्र फिर कुबेर की भी पूजा करें. उनका स्मरण ध्यान करके उनके निमित्त सामग्री अर्पित करें और प्रणाम करें.

अब श्रीमहालक्ष्मीजी की पूजा आरंभ करें. महालक्ष्मी की पूजा से पूर्व इन देवताओं का आह्वान एवं पूजन कर लेने से वह बहुत प्रसन्न होती हैं क्योंकि इंद्र वरूण आदि सभी लक्ष्मीजी की आराधना करते हैं. इस तरह माता की आराधना वे भी करते हैं.

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दीपावली को महालक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए षोडशोपचार पूजन विधिः

सोलह प्रकार के पूजन को सरल बनाने के लिए उसे 34 भाग में बांट दिया है ताकि कुछ छूट न जाए और आपको पूजा करना कठिन न लगे. इसे पूरा करने में दस से 12 मिनट का समय लगेगा.

1. ध्यानः

भगवती लक्ष्मी का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मी की नवीन प्रतिमा में करें. ध्यान मंत्रः

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गंभीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया।

या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितै: स्नापिता हेमकुम्भै:
सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।

मन्त्र का अर्थ-

भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुई और सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि-जटित दिव्य स्वर्ण-कलशों के द्वारा स्नान किए हुए हैं, वे कमल-हस्ता सदा सभी मङ्गलों के सहित मेरे घर में निवास करें।)

 

2. आवाहन

श्रीभगवती लक्ष्मी का ध्यान करने के बाद, निम्न मन्त्र पढ़ते हुये श्रीलक्ष्मी की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें.

आगच्छ देव देवेशि, तेजोमयि महालक्ष्मी,
क्रियामाणां मयापूजां गृहाण सुर वंदिते।
श्रीलक्ष्मी देवीं आवाह्यामि।

मन्त्र का अर्थ- हे देवताओं की ईश्वरि! तेजमयी हे महादेवि लक्ष्मी! देव-वन्दिते! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें। मैं भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूँ)

 

3. पुष्पाञ्जलिः 

आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर माता लक्ष्मी को आसन प्रदान करने के लिए पांच पुष्प अंजलि में लेकर अपने सामने छोड़ें-

श्रीलक्ष्मी-देव्यै आसनार्थे पंचपुष्पम् समर्पयामि।

अर्थः भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ.

 

4. स्वागतः
पुष्पांजलि-रूप आसन प्रदान करने के बाद, मन्त्र पढ़ते हुए हाथ जोड़कर श्रीलक्ष्मी का स्वागत करें.

श्रीलक्ष्मी देवि स्वागतम्।

हे महालक्ष्मी देवी आपका स्वागत है.

 

5. पाद्यः
स्वागत कर निम्न मन्त्र से पाद्य अर्थात चरण धोने हेतु जल समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी देव्यै पाद्यम् नमः

अर्थः भगवती श्रीलक्ष्मी को पैर धोने के लिए यह जल है-उन्हें नमस्कार

 

6. अर्घ्यः
पाद्य समर्पण के बाद उन्हें अर्घ्य (शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै अर्घ्यम् स्वाहा

अर्थः भगवती श्रीलक्ष्मी के लिए अर्घ्य समर्पित है.

 

7. स्नानः

अर्घ्य के बाद निम्न मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को जल से स्नान कराएं.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै स्नानं जलं समर्पयामि

अर्थः श्रीलक्ष्मीदेवी को स्नान के लिए जल समर्पित करता हूं.

 

8. पञ्चामृत स्नानः
श्रीलक्ष्मी को निम्न मंत्र से पञ्चामृत स्नान से स्नान कराएं. मंत्र पढ़ते हुए पंचामृत छिड़का जाता है.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै पंचामृतस्नानं समर्पयामि

श्रीलक्ष्मी देवी को स्नान के लिए पंचामृत समर्पित करता हूं

 

9. गन्ध स्नानः
श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान कराएं. मंत्र पढ़ते हुए गंध यानी इत्र छिड़का जाता है.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै गंधस्नानं समर्पयामि

अर्थः स्नान के लिए महालक्ष्मी देवी को गंध समर्पित करता हूं.

पंचामृत और गंध से स्नान कराने के बाद माता लक्ष्मी को शुद्धजल से स्नान अवश्य कराना चाहिए.

 

10. शुद्ध स्नानः

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान कराएँ.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी के स्नान के लिए शुद्ध जल अर्पित करते हैं.

 

11. वस्त्रः
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को मोली या कलावा के रूप में वस्त्र समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै वस्त्रम् समर्पयामि।

अर्थः श्रीलक्ष्मीदेवी को स्नान के लिए वस्त्र समर्पित करते हैं.

 

12. मधुपर्कः
श्री लक्ष्मी देवी को दूध व शहद का मिश्रण, मधुपर्क अर्पित करें. निम्न मंत्र पढ़ेंः

श्रीलक्ष्मी-देव्यै मधुपर्कम् समर्पयामि

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी को मधुपर्क समर्पित करते हैं.

 

13. आभूषणः

मधुपर्क के बाद निम्न मन्त्र पढ़कर आभूषण चढ़ाएं. लोग नए अाभूषण खरीदते हैं और माता को समर्पित करने के उपरांत धारण करते हैं. स्वर्ण, चांदी, मोती आदि के आभूषण हो सकते हैं. कुछ नहीं हो तो चूड़ी आदि शृंगार का सामान अर्पित कर सकते हैं.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै आभूषणानि समर्पयामि

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी को आभूषण आदि समर्पित करते हैं.

14. रक्तचन्दनः
आभूषण के बाद निम्न मन्त्र पढ़कर श्रीलक्ष्मी को लाल चन्दन चढ़ायें.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै रक्तचंदनम् समर्पयामि।

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी को लाल चंदन समर्पित करता हूं.

सिन्दूरः निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मीजी को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ाएं.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै सिंदूरम् समर्पयामि

लक्ष्मी देवी को सिंदूर समर्पित करता हूं.

 

15. कुमकुमः निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अखण्ड सौभाग्य रूपी कुङ्कुम चढ़ायें.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै कुमकुमं समर्पयामि

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी को कुमकुम समर्पित करता हूं.

 

16. अबीर गुलाल
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अबीरगुलाल चढ़ाएं.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै अबीर गुलालं समर्पयामि।

 

17. सुगन्धित द्रव्यः
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को सुगन्धित द्रव्य चढ़ायें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै सुगंधिततैलं समर्पयामि।


18. अक्षतः

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अक्षत चढ़ायें।

श्रीलक्ष्मी-देव्यै अक्षतान् समर्पयामि।

श्रीलक्ष्मी देवी को अक्षत समर्पित करते हैं.

 

19. चन्दन-समर्पण
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को चन्दन समर्पित करें।
श्रीलक्ष्मी-देव्यै चंदनं समर्पयामि

 

20. पुष्प-समर्पण
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै पुष्पं समर्पयामि

 

21. अंग पूजनः

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवती लक्ष्मी के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना चाहिए. इसके लिए बाएं हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन रख लें. इसके बाद माता लक्ष्मी का ध्यान करके नीचे लिखे प्रत्येक मन्त्र का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से थोड़ा-थोड़ा करके श्रीलक्ष्मीजी की मूर्ति के पास छोड़ें.

–श्रीलक्ष्मी-देव्यै पंचामृतस्नानं समर्पयामि

— ऊँ चपलायै नमः पादौ पूजयामि

— ऊं चंचलायै नमः जानू पूज्यामि

— ऊं कमलायै नमः कटिं पूज्यामि

— ऊँ कात्यायन्यै नमः नाभिं पूज्यामि

— ऊं जगन्मात्रै नमः जठरं पूज्यामि

— ऊं विश्ववल्लभायै नमः वक्षस्थलं पूज्यामि

— ऊं कमलवासिन्यै नमः हस्तौ पूज्यामि

— ऊं कमलपत्राक्ष्यै नमः नेत्रत्रय पूज्यामि

— ऊं श्रियै नमः शिरं पूज्यामि

इसके बाद अष्ट सिद्धियों और अष्ट लक्ष्मी का स्मरण कर उनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए. अष्ट सिद्धि-अष्ट लक्ष्मी पूजन बहुत सरल है. बस दो मिनट का समय लगेगा.

 

22. अष्ट-सिद्धि पूजा
अंग-देवताओं की पूजा करने के बाद पुनः बाएँ हाथ में चन्दन, पुष्प व चावल लेकर दाएँ हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-सिद्धियों का भी स्मरण पूजन करें. मन में यह भाव लाएं कि माता के चारों तरफ अष्ट सिद्धि देवियां उपस्थित हैं और आप उनकी पूजा कर रहे हैं.

 

23. अष्ट-लक्ष्मी पूजाः

अष्ट-सिद्धियों की पूजा के बाद उपर्युक्त विधि से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-लक्ष्मियों की पूजा चावल, चन्दन और पुष्प से करें.

 

24. धूप-समर्पणः
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें.
श्रीलक्ष्मी-देव्यै धूपं समर्पयामि

 

25. दीप-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै दीपं समर्पयामि

 

26. नैवेद्य-समर्पण
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को नैवेद्य यानी मिठाई आदि समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै नैवेद्यम् समर्पयामि

 

27. आचमन-समर्पण/जल-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें.
श्रीलक्ष्मी-देव्यै आचमनीयं जलं समर्पयामि

 

28. ताम्बूल यानी पान-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै मुख-वासार्थम् पुंगी फलं युक्तं ताम्बूलं समर्पयामि

(भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ.)

29. दक्षिणा
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दक्षिणा समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै सुवर्ण-पुष्प-दक्षिणां समर्पयामि।

अर्थः भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दिवाली के शुभ मुहूर्त में स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ.

 

30. प्रदक्षिणाः
अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर यानी घड़ी की सूइयों के घूमने की दिशा में परिक्रमा) के साथ मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को फूल समर्पित करें.

प्रदक्षिणा के समय कहें- हे मातेश्वरी! पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं. हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरणदात्री हो. अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो. भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ.

 

31.वन्दना-सहित पुष्पाञ्जलिःअब वन्दना करें और श्रीलक्ष्मीजी को पुष्प समर्पित करें. पुष्प समर्पित करते हुए माता से प्रार्थना करें-

हे दयासागर माता श्रीलक्ष्मी! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात अपराध हों, मेरे उन सब अपराधों को आप क्षमा करें. आपकी जय हो, जय हो. मेरी रक्षा करें.

 

32. साष्टांग-प्रणामः
श्रीलक्ष्मी को साष्टाङ्ग प्रणाम (प्रणाम जिसे आठ अङ्गों के साथ किया जाता है) कर नमस्कार करें. इसके लिए भूमि पर लेट जाएं एवं आठों अंगों को विनीत भाव में लाकर प्रणाम करें. साष्टांग करते समय यह प्रार्थना करें-

हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देनेवाली महालक्ष्मी हैं. हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों. आपको नमस्कार है. इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी आप प्रसन्न हों. आपको बारम्बार नमस्कार है.

 

33. आरतीः 

माता लक्ष्मीजी की आरती प्रभु शरणम् ऐप्प में दी गई है. उसे देखकर आप आरती कर सकते हैं अथवा आपके पास कोई पुस्तक हो तो उससे कर सकते हैं.  यदि संभव हो तो आरती से पूर्व एकबार श्री सूक्त का पाठ कर लें. श्रीसूक्त धन बरसाने वाला श्रीलक्ष्मी का सर्वप्रिय प्रार्थना कहा गया है. इसके पाठ में मुश्किल से दो मिनट लगेंगे. प्रभु शरणम् ऐप्प के श्रीलक्ष्मी मंत्र सेक्शन में आपको मिल जाएगा.

34. क्षमा-प्रार्थना
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि,
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।
अनेन यथा मिलितोपचार द्रव्यैः कृत पूजनेन श्रीलक्ष्मी-देवी प्रियताम्।।

मन्त्र अर्थः-
न मैं आवाहन करना जानता हूं, न विसर्जन करने की विधि. पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता. अतः हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो. मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो. यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों.

दीप प्रज्वल्लन और प्रसाद वितरणः

भगवती श्रीलक्ष्मी को यह सब पूजन सादर समर्पित है. इसके बाद माता की आरती करके प्रसाद वितरण कर लें. माता लक्ष्मी को समर्पित दीपों में से निकालकर कुछ दीप सब जगह प्रज्वल्लित कर दें.

इस प्रकार माता लक्ष्मीजी की विधिवत पूजा होती है. आप इसे जब करेंगे तो पूरी पूजा में करीब पंद्रह मिनट का ही समय लगता है. यदि आपको यह पोस्ट जरा सा भी उपयोगी लगा हो तो हम आपसे अनुरोध करेंगे कि आप प्रभु शरणम् ऐप्प डाउनलोड करके देखें. इससे भी ज्यादा उपयोगी धर्म-कर्म, पूजा-पाठ से जुड़ी बातें वहां है. प्रभु शरणम् धर्मप्रचार का एक मिशन है. आप इससे जुड़ें. यह एकदम फ्री है. आप ऐप्प एकबार देखें जरूर आपका मन प्रसन्न हो जाएगा. पसंद न आए तो डिलीट कर दीजिएगा पर बिना देखे निर्णय कैसे करेंगे.

प्रभु शरणम् कैसे डाउनलोड करेंः

आप दो तरीके से कर सकते हैं. प्लेस्टोर में जाएं वहां PRABHU SHARNAM टाइप करें. पीले रंग की पट्टी पर “ऊँ प्रभु शरणम्” लिखा आइकॉन दिख जाएगा. उसे क्लिक करके डाउनलोड कर लें. दूसरी विधि है कि नीचे दिए लिंक से डाउनलोड कर लें.

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पांच लाख लोग प्रभु शरणम् की सहायता से पूजा-पाठ करते हैं. आप भी एक बार ट्राई जरूर कीजिएगा.

धार्मिक अभियान प्रभु शरणम् के बारे में दो शब्दः 

सनातन धर्म के गूढ़ रहस्य, हिंदूग्रथों की महिमा कथाओं ,उन कथाओं के पीछे के ज्ञान-विज्ञान से हर हिंदू को परिचित कराने के लिए प्रभु शरणम् मिशन कृतसंकल्प है. देव डराते नहीं. धर्म डरने की चीज नहीं हृदय से ग्रहण करने के लिए है. तकनीक से सहारे सनातन धर्म के ज्ञान के देश-विदेश के हर कोने में प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से प्रभु शरणम् मिशन की शुरुआत की गई थी. इससे देश-दुनिया के कई लाख लोग जुड़े और लाभ उठा रहे हैं. आप स्वयं परखकर देखें. आइए साथ-साथ चलें; प्रभु शरणम्!

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