द्रौपदी के एक शाप के कारण कुत्ते सबके सामने सहवास करते हैं. सहवास जैसा नितांत निजी कार्य कुत्ते सार्वजनिक रूप से द्रोपदी के शाप के कारण करते हैं. द्रौपदी ने कुत्तो को क्यों दिया था ऐसा शाप.
द्रौपदी का विवाह पांचों पांडवों से हो गया. पांचों पांडवों से द्रौपदी का विवाह हो रहा है यह सुनकर द्रुपद क्रोधित थे लेकिन वेद-व्यासजी ने उन्हें यह समझाया कि द्रौपदी ने स्वयं ऐसा वरदान महादेव से मांगा था. द्रोपदी इंद्राणी शचि का अवतार हैं. पांचों पांडव वास्तव में इंद्र के पांच स्वरूप हैं इस प्रकार आपकी पुत्री पांच पतियों की पत्नी नहीं बन रही. पांच हिस्से में बंटी इंद्र की शक्तियों को संगठित कर रही है. इसका उपयोग भूदेवी के कल्याण के लिए होना है.
महाभारत को वेद-व्यासजी ने पांचवा वेद बताया है. इसमें जो प्रसंग जो कथाएं आती हैं वे सब कुछ न कुछ दूर की बात कहती हैं. महाभारत की कथाओं से जुड़ी कई सहयोगी कथाएं अन्य पुराणों में भी आती है.
कुत्तों को द्रौपदी के शाप की कथा अगर देखें तो बस एक सामान्य कथा हो सकती है या फिर समझें तो आज के समाज की आँख खोलने वाली कथा. प्रेम प्रदर्शन, सहवास, मिलन आदि नितांत निजी प्रसंग हैं. इन्हें सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने वालों को कुत्तों की श्रेणी में रखा जा सकता है.

आजकल ट्रेन, पार्क, कॉलेजों आदि में जो सार्वजनिक रूप से हो रहा है उसकी कल्पना पहले ही हो गई थी. ऐसी क्रियाओं को श्वान क्रिया बताया गया है.

कुत्तों के सार्वजनिक रूप से सहवास की कथा प्रकाशित करने का यही कारण है. इंद्र इंद्रियों के प्रतीक हैं. इंद्राणी इद्रियों के आचरण की प्रतीक हैं. द्रौपदी इंद्राणी हैं इसलिए द्रौपदी द्वारा कही गई बात, हर काल में सत्य है.

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द्रुपद संतुष्ट हो गए और पांडवों से पुत्री का विधिवत विवाह किया. द्रौपदी पांच पतियों के साथ रहने लगीं.  द्रौपदी से विवाह के बाद एक दिन देवर्षि नारद पांडवों से मिलने आए. द्रौपदी ने उनका बड़ा सत्कार किया. नारदजी ने द्रौपदी से दांपत्य जीवन के बारे में जानना चाहा. संकोचवश द्रौपदी बहुत कुछ नहीं बता रही थीं.
नारदजी ने उन्हें कहा कि गुरू समझकर सारी व्यवस्था का वर्णन करो. नारदजी ने सारा हाल जाना. द्रौपदी व्यवस्था को बनाए रखने का प्रयास तो कर रही थीं किंतु नारदजी इससे संतुष्ट न थे.
उन्हें यह बात खटक रही थी कि किसी भी समय यौनक्रिया का आवेश भाइयों के बीच द्वेष का बीज बो सकता है. यौनअग्नि सबसे प्रचंड होती है. पांचों पांडव इंद्र के ही अंश है. इंद्रिय सुख के लोभ में किसी दिन ये पांचों उलझ न जाएं. इनकी एकता भंग हुई तो देवकार्य अधूरा रह जाएगा.
नारदजी ने पांडवों से इस संदर्भ में पहले तो अलग-अलग बात की. भाइयों के आपसी प्रेम से वे संतुष्ट थे पर भविष्य को कौन जानता है. इसके लिए
उन्होंने पांचों भाइयों को एक साथ बुलाकर कहा- आप सबका स्नेहबंधन अटूट है. फिर भी स्त्रीमोह ऐसा मोह है जिसमें सबसे मजबूत बंधन भी छिन्न-भिन्न हो जाता है. आपको दांपत्यसुख का नियम बनाना होगा.
नारदजी की बात सुनकर भाइयों को थोड़ा विस्मय और थोड़ा क्रोध भी हुआ. तब नारदजी ने उन्हें दो राक्षस भाइयों सुंद-उपसुंद की कथा सुनाई.
सुंद-उपसुंद के बीच प्रेम पांडवों से भी अधिक था परंतु एक अप्सरा ने उनका यह स्नेह बंधन तोड़ा. परिणामस्वरूप देवताओं को जीतने वाले दोनों भाई स्त्रीलोभ को न जीत सके. वे आपस में लड़ मरे. सुंद-उपसुंद की कथा इस लिंक से पढ़ें-
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नारदजी के मुख से यह सुनने के बाद पांचों भाइयों ने उनसे क्षमा मांगी और परामर्श देने को कहा.
नारदजी ने द्रौपदी को भी बुलवाया.
पांडवों के बीच नियम तय हुआ पर कुत्तों को खुले में सहवास का शाप क्यों मिला.. अगले पेज पर…

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